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चतुर्निकाय के देवो के भेद
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नाग का, विद्युत्कुमारों के वज्र का, सुपर्णकुमारो के गरुड का, अग्निकुमारो के घट का, वातकुमारों के अश्व' का, स्तनितकुमारों के वर्धमान सकोरापुट ( सकोरायुगल) का, उदधिकुमारों के मकर का द्वीपकुमारो के सिंह का और दिक्कुमारों के हस्ति का चिह्न होता है । नागकुमार आदि सभी के चिह्न उनके आभरण मे होते है । सभी के वस्त्र, शस्त्र, भूषण आदि विविध होते है । ११ ।
४. ११ -२०
व्यन्तरों के भेद-प्रभेद - सभी व्यन्तरदेव ऊर्ध्व, मध्य और अध तीनों लोकों मे भवनों तथा आवासो मे बसते है । वे स्वेच्छा से या दूसरों की प्रेरणा से भिन्न-भिन्न स्थानों पर जाते रहते हैं । उनमे से कुछ तो मनुष्यो की भी सेवा करते हैं । विविध पहाड़ों और गुफाओं के अन्तरो मे तथा वनो के अन्तरो मे बसने के कारण उन्हे व्यन्तर कहा जाता है । इनमे से किन्नर नामक व्यन्तरदेव दस प्रकार के है— किन्नर, किपुरुष, किपुरुषोत्तम, किन्नरोत्तम, हृदयंगम, रूपशाली, अनिन्दित, मनोरम, रतिप्रिय और रतिश्रेष्ठ । किंपुरुष नामक व्यन्तरदेव दस प्रकार के है - पुरुष, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषवृषभ, पुरुषोत्तम, अतिपुरुष, मरुदेव, मरुत, मेरुप्रभ और यशस्वान् । महोरग दस प्रकार के है- भुजंग, भोगशाली, महाकाव्य, अतिकाय, स्कन्धशाली, मनोरम, महावेग, महेष्वक्ष, मेरुकान्त और भास्वान् । गान्धर्व बारह प्रकार के है- हाहा, हूहू, तुम्बुरव, नारद, ऋषिवादिक, भूतवादिक, कादम्ब, महाकादम्ब, रैवत, विश्वावसु, गीतरति और गीतयश । यक्ष तेरह प्रकार के है- पूर्णभद्र, मणिभद्र, श्व ेतभद्र, हरिभद्र, सुमनोभद्र, व्यतिपातिकभद्र, सुभद्र, सर्वतोभद्र, मनुष्ययक्ष, वनाधिपति, वनाहार, रूपयक्ष और यक्षोत्तम । राक्षस सात प्रकार के है- भीम, महाभीम, विघ्न, विनायक, जलराक्षस, राक्षस और ब्रह्मराक्षस - भूत नौ प्रकार के है- सुरूप, प्रतिरूप, अतिरूप, भूतोत्तम, स्कन्दिक, महास्कन्दिक, महावेग, प्रतिच्छन्न और आकाशग । पिशाच पन्द्रह प्रकार के है - कूष्माण्ड, पटक, जोष, आह्नक, काल, महाकाल, चौक्ष, अचौक्ष, तालपिशाच, मुखरपिशाच, अधस्तारक, देह, महाविदेह, तूष्णीक और वनपिशाच ।
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आठों प्रकार के व्यन्तरो के चिह्न क्रमश: अशोक, चम्पक, नाग, तुम्बरु, वट, खट्वाङ्ग, सुलस और कदम्बक है । खट्वाङ्ग के अतिरिक्त शेष सब चिह्न वृक्ष जाति के है जो उनके आभूषण आदि में होते है । १२ ।
पञ्चविध ज्योतिष्क- - मेरु के समतल भूभाग से सात सौ नब्बे योजन की १. संग्रहणी ग्रन्थ मे उदधिकुमारो के अश्व का और वातकुमारो के मकर का चिन्ह उल्लिखित है । देखें — गा० २६ ।
२. तापस का उपकरण विशेष ।
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