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४. ७-१०]
प्रथम दो निकायों में लेश्या
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इन्द्रों की संख्या
पूर्वयोर्द्वान्द्राः।६। प्रथम दो निकायों में दो-दो इन्द्र हैं।
भवनपतिनिकाय के असुरकुमार आदि दस प्रकार के देवों में तथा व्यन्तरनिकाय के किन्नर आदि आठ प्रकार के देवों में दो-दो इन्द्र है। जैसे चमर और बलि असुरकुमारों के, धरण और भूतानन्द नागकुमारों के, हरि और हरिसह विद्युत्कुमारों के, वेणुदेव और वेणुदारी सुपर्णकुमारों के, अग्निशिख और अग्निमाणव अग्निकुमारों के, वेलम्ब और प्रभञ्जन वातकुमारों के, सुघोष और महाघोष स्तनितकुमारों के जलकान्त और जलप्रभ उदधिकुमारों के, पूर्ण और वासिष्ठ द्वीपकुमारों के, तथा अमितगति और अमितवाहन दिक्कुमारों के इन्द्र है । इसी तरह व्यन्तरनिकाय मे भी है जैसे किन्नरों के किन्नर और किंपुरुष, किंपुरुषों के सत्पुरुष और महापुरुष, महोरग के अतिकाय और महाकाय, गन्धर्वो के गीतरति और गीतयश, यक्षों के पूर्णभद्र और मणिभद्र, राक्षसों के भीम और महाभीम, भूतों के प्रतिरूप और अप्रतिरूप तथा पिशाचों के काल और महाकाल ये दो-दो इन्द्र है।
भवनपति और व्यन्तर इन दोनों निकायों मे दो-दो इन्द्र बतलाकर शेष दो निकायो में दो-दो इन्द्रो का अभाव दर्शाया गया है । ज्योतिष्कनिकाय में तो चन्द्र
और सूर्य ही इन्द्र है । चन्द्र और सूर्य असंख्यात है, इसलिए ज्योतिष्कनिकाय मे इन्द्र भी इतने ही है । वैमानिकनिकाय में प्रत्येक कल्प में एक-एक इन्द्र है । सौधर्म कल्प मे शक्र, ऐशान मे ईशान, सानत्कुमार मे सनत्कुमार नामक इन्द्र है । इसी प्रकार ऊपर के देवलोकों मे उन देवलोको के नामवाला एक-एक इन्द्र है । विशेषता इतनी ही है कि आनत और प्राणत इन दो कल्पों का प्राणत नामक एक ही इन्द्र है। आरण और अच्युत इन दो कल्पों का भी अच्युत नामक एक ही इन्द्र है । ६।
प्रथम दो निकायों मे लेश्या
पीतान्तलेश्याः । ७॥ प्रथम दो निकायों के देव पीत ( तेजः ) पर्यन्त लेश्यावाले हैं।
भवनपति और व्यन्तर जाति के देवो मे शारीरिक वर्णरूप द्रव्यलेश्या चार ही मानी जाती है, जैसे कृष्ण, नील, कापोत और पीत ( तेजः ) । ७ ।
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