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तत्त्वार्थ सूत्र
चार निकायों के भेद
दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः । ३ । कल्पोपपन्न देवों तक चतुर्निकायिक देवों के क्रमशः दस, आठ, पाँच और बारह भेद है |
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भवनपति निकाय के दस, व्यन्तरनिकाय के आठ, ज्योतिष्क निकाय के पाँच और वैमानिकनिकाय के बारह भेद है, जिनका वर्णन आगे आयेगा । वैमानिक निकाय के बारह भेद कल्पोपपन्न वैमानिक देव तक के है, क्योंकि कल्पातीत देव वैमानिकनिकाय के तो है, पर उनकी गणना उक्त बारह भेदों मे नही है । सौधर्म से अच्युत तक बारह स्वर्ग ( देवलोक ) है, जिन्हे कल्प कहा जाता है । ३ ।
चतुर्निकाय के अवान्तर भेद
इन्द्रसामानिकत्रास्त्रशपारिषद्यात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोग्य किल्विषिकाचैकशः । ४ ।
त्रायस्त्रशलोकपालवर्ज्या व्यन्तरज्योतिष्काः । ५ ।
चतुर्निकाय के उक्त दस आदि एक-एक इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिश, पारिषद्य, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिकरूप हैं ।
व्यन्तर और ज्योतिष्क देव त्रायस्त्रिश तथा लोकपाल-रहित हैं ।
भवनपतिनिकाय के असुरकुमार आदि दस प्रकार के देव है । ये सब देव इन्द्र, सामानिक आदि दस भागों में विभक्त है । १. इन्द्र - सामानिक आदि सब प्रकार के देवो के स्वामी । २. सामानिक—– आयु आदि मे इन्द्र के समान अर्थात् अमात्य, पिता, गुरु आदि की तरह पूज्य, पर इनमे मात्र इन्द्रत्व नहीं होता । ३. त्रायस्त्रिश
-मंत्री या पुरोहित का काम करनेवाले । ४. पारिषद्य - मित्र का काम करने - वाले । ५. आत्मरक्षक — शस्त्र धारण करके आत्मरक्षक के रूप मे पीठ की ओर खड़े रहनेवाले । ६. लोकपाल - सीमाके रक्षक । ७. अनीक - सैनिक और सेनाधिपति । ८. प्रकीर्णक नगरवासी और देशवासी के समान । ९. आभियोग्य सेवक या दास के तुल्य । १०. किल्विषिक - अन्त्यजों के समान । बारह देवलोकों में अनेक प्रकार के वैमानिक देव भी इन्द्र, सामानिक आदि दस भागों में विभक्त है ।
व्यन्तरनिकाय के आठ और आठ विभागों में ही विभक्त है, लोकपाल जाति के देव नही होते
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ज्योतिष्क निकाय के पाँच प्रकार के देव इन्द्र आदि क्योकि इन दोनों निकायों में त्रायस्त्रिश और
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