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३. ७-१८ ]
मध्यलोक
सातों क्षेत्रों को एक-दूसरे से अलग करनेवाले छ: पर्वत है जो वर्षधर कहलाते हैं । ये सभी पूर्व-पश्चिम लम्बे है । भरत और हैमवत क्षेत्र के बीच हिमवान् पर्वत है । हैमवत और हरिवर्ष का विभाजक महाहिमवान् है । हरिवर्ष और विदेह का विभाजक निषधपर्वत है । विदेह और रम्पकवर्ष का विभाजक नीलपर्वत है । रम्यक और हैरण्यवत का विभाजक रुक्मीपर्वत है । हैरण्यवत और ऐरावत का विभाजक शिखरीपर्वत है ।
ऊपर निर्दिष्ट सातों क्षेत्र थाली की आकृति के जम्बूद्वीप में पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर तक विस्तृत लम्बे पट के रूप मे एक के बाद एक अवस्थित हैं । विदेहक्षेत्र इन सबके मध्य में हैं, इसलिए मेरुपर्वत भी उस क्षेत्र के ठीक मध्य में अवस्थित है | विदेहक्षेत्र को रम्यकक्षेत्र से नीलपर्वत विभक्त करता है और हरिवर्षक्षेत्र को निषधपर्वत विभक्त करता है । विदेहक्षेत्र मे मेह और नीलपर्वत के बीच का अर्धचन्द्राकार भाग उत्तरकुरु है जिसकी पूर्व-पश्चिम सीमा वहाँ के दो पर्वत से निश्चित होती है ; तथा मेरु तथा निषधपर्वत के बीच का वैसा ही अर्धचन्द्राकार भाग देवकुरु है । देवकुरु और उत्तरकुरु ये दोनों क्षेत्र विदेह अर्थात् महाविदेह के ही भाग है; परन्तु उन क्षेत्रो मे युगलियों की आबादी होने के कारण वे भिन्न रूप से पहचाने जाते है । देवकुरु और उत्तरकुरु के भाग का क्षेत्र छोडने पर महाविदेह के अवशिष्ट पूर्व और पश्चिम भाग में सोलह-सोलह विभाग है । ये विभाग विजय कहलाते है । इस प्रकार सुमेरपर्वत के पूर्व और पश्चिम दोनों ओर कुल मिलाकर ३२ विजय है ।
जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र की सीमा पर स्थित हिमवान्पर्वत के दोनों छोर पूर्वपश्चिम लवणसमुद्र में फैले हुए है । इसी प्रकार ऐरावतक्षेत्र की सीमा पर स्थित शिखरीपर्वत के दोनो छोर भी लवणसमुद्र मे फैले हुए है । प्रत्येक छोर दो भागों मे विभाजित होने से कुल मिलाकर दोनो पर्वतो के आठ भाग लवणसमुद्र मे आते है । दाढों की आकृति के होने से उन्हें दाढ़ा कहा जाता है । प्रत्येक दाढ़ा पर मनुष्यों की आबादीवाले सात-सात क्षेत्र है । ये क्षेत्र लवणसमुद्र मे आने के कारण अतद्वीप के रूप मे प्रसिद्ध हैं, जिनकी संख्या छप्पन है । उनमे भी युगलिया मनुष्य रहते है । ९-११ ।
Prastaण्ड और पुष्करार्धद्वीप - जम्बूद्वीप की वर्ष और वर्षधर की संख्या दुगुनी है, अर्थात् वहाँ दो
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ऐरावत क्षेत्र मे सूर्योदय की दिशा है । इसलिए वहाँ भी सूर्योदय की ओर मुख करने से मेरुपर्वत उत्तर दिशा में ही पडता है। इसी प्रकार दूसरे क्षेत्रों में भी मेरु उत्तर में ही पडता है ।
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अपेक्षा धातकीखण्ड में मेरु, मेरु, चौदह वर्ष और बारह
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