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वेद (लिंग) के प्रकार
युद्ध आदि विप्लव मे हजारों नौजवानों को एक साथ मरते देखकर और बूढे तथा जर्जर देहवालो को भी भयानक विपदाओ से बचते देखकर यह सन्देह होता है कि क्या अकालमृत्यु भी है, जिससे अनेक लोग एक साथ मर जाते है और कोई नही भी मरता ? इसका उत्तर हाँ और ना मे यहाँ दिया गया है ।
आयु के दो प्रकार है- अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय । जो आयु बन्धकालीन स्थिति के पूर्ण होने से पहले ही शीघ्र भोगी जा सके वह अपवर्तनीय है और जो आयु बन्धकालीन स्थिति के पूर्ण होने से पहले न भोगी जा सके वह अनपवर्तनीय है, अर्थात् जिस आयु का भोगकाल बन्धकालीन स्थितिमर्यादा से कम हो वह अपवर्तनीय और जिसका भोगकाल उक्त मर्यादा के समान ही हो वह अनपवर्तनीय है।
अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय आयु का बन्ध स्वाभाविक नही है किन्तु परिणाम के तारतम्य पर अवलम्बित है। भावी जन्म की आयु वर्तमान जन्म मे निर्माण की जाती है। उस समय यदि परिणाम मन्द हों तो आयु का बन्ध शिथिल हो जाता है, जिससे निमित्त मिलने पर बन्धकालीन कालमर्यादा घट जाती है । इसके विपरीत यदि परिणाम तीव्र हों तो आयु का बन्ध गाढ़ होता है, जिससे निमित्त मिलने पर भी बन्धकालीन कालमर्यादा नही घटती और न आयु एक साथ भोगी जा सकती है। जैसे अत्यन्त दृढ होकर खडे पुरुषो की पंक्ति अभेद्य और शिथिल रूप मे खड़े पुरुषों की पक्ति भेद्य होती है, अथवा जैसे सघन बोये हुए बीजों के पौधे पशुओ के लिए दुष्प्रवेश्य और दूर-दूर बोये हुए बीजों के पौधे सुप्रवेश्य होते है, वैसे ही तीव्र परिणाम से गाढ रूप में बद्ध आयु शस्त्र-विष आदि का प्रयोग होने पर भी अपनी नियत कालमर्यादा से पहले पूर्ण नही होती और मन्द परिणाम से शिथिल रूप में बद्ध आयु उक्त प्रयोग होते ही अपनी नियत कालमर्यादा समाप्त होने के पहले ही अन्तर्मुहूर्त मात्र मे भोग ली जाती है । आयु के इस शीघ्र भोग को ही अपवर्तना या अकालमृत्यु कहते है और नियत स्थिति के भोग को अनपवर्तना या कालमृत्यु कहते है । अपवर्तनीय आयु सोपक्रमउपक्रम सहित ही होती है। तीव्र शस्त्र, तीव्र विष, तीव्र अग्नि आदि जिन निमित्तों से अकालमृत्यु होती है उनका प्राप्त होना उपक्रम है । यह अपवर्तनीय
आयु के अवश्य होता है, क्योकि वह आयु नियम से कालमर्यादा समाप्त होने के पहले ही भोगने योग्य होती है। परन्तु अनपवर्तनीय आयु सोपक्रम और निरुपक्रम दो प्रकार की होती है अर्थात् उस आयु को अकालमृत्यु लानेवाले उक्त निमित्तों का सन्निधान होता भी है और नही भी होता। उक्त निमित्तों का सन्निधान होने पर भी अनपवर्तनीय आयु नियत कालमर्यादा के पहले पूर्ण नहीं
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