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३.१-६]
नारको का वर्णन
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लोक के अधः, मध्य और ऊर्ध्व तीन भाग है। अधोभाग मेरुपर्वत के समतल के नीचे नौ सौ योजन की गहराई के बाद गिना जाता है, जो आकाश में
औधे किये हुए सकोरे के समान है अर्थात् नीचे-नीचे विस्तीर्ण है। समतल के नीचे तथा ऊपर के नौ सौ-नौ सौ योजन अर्थात् कुल अठारह सौ योजन का मध्यलोक है, जो आकार मे झालर के समान बराबर आयाम-विष्कम्भ ( लम्बाईचौडाई ) वाला है । मध्यलोक के ऊपर ऊर्ध्वलोक है जो आकार में पखावज ( मृदङ्गविशेष ) के समान है। ___ नारको के निवासस्थान अधोलोक में है जहाँ को भूमियाँ 'नरकभूमि' कहलाती है। ये भूमियाँ सात है जो समश्रेणि मे न होकर एक-दूसरी के नीचे है। उनका आयाम ( लम्बाई ) और विष्कम्भ ( चौडाई ) समान नही है, किन्तु नीचेनीचे की भूमि की लम्बाई-चौडाई अधिक-अधिक है; अर्थात् पहली भूमि से दूसरी की लम्बाई-चौडाई अधिक है, दूसरी से तीसरी की । इसी प्रकार छठी से सातवीं तक की लम्बाई-चौड़ाई अधिक-अधिक होती गई है।
ये सातों भूमियाँ एक-दूसरी के नीचे है, किन्तु विलकुल सटी हुई नहीं हैं, एक-दूसरी के बीच बहुत अन्तर है । इस अन्तर मे घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश क्रमशः नीचे-नीचे है अर्थात् पहली नरक भूमि के नीचे घनोदधि है, इसके नीचे घनवात, धनवात के नीचे तनुवात और तनुवात के नीचे आकाश है। आकाश के बाद दूसरी नरकभूमि है । दूसरी भूमि और तीसरी भूमि के बीच भी क्रमशः घनोदधि आदि है। इसी तरह सातवी भूमि तक सब भूमियों के नीचे उसी क्रम से घनोदधि आदि है ।' ऊार की अपेक्षा नीचे का पृथ्वीपिंड-भूमि
१. भगवतीसूत्र मे लोक स्थिति का स्वरूप वर्णन बहुत स्पष्ट रूप में इस प्रकार है
"त्रस-रथावरादि प्राणियो का आधार पृथ्वी है, पृथ्वी का आधार उदधि है, उदधि का आधार वायु है और वायु का आधार आकाश है। बायु के आधार पर उदधि और उसके आधार पर पृथ्वी कैसे ठहर सकती है ? इस प्रश्न का स्पष्टीकरण यह है : कोई पुरुष चमडे की मशक को हवा भरकर फुला दे। फिर उसके मुह को चमडे के फीते से मउबत गॉठ देकर बॉध दे। इस मरक के बीच के भाग को भी बॉध दे। ऐसा करने से मशक में भरे हुए पवन के दो भाग हो जाएंगे, जिससे मशक डुगडुगी जैसी लगेगी। तब मराक का मुंह खोलकर ऊपर के भाग मे से हवा निकाल दे और उसकी जगह पानी भर कर फिर मशक का मुह बन्द कर दे और बीच का बन्धन खोल दे। फिर ऐसा लगेगा कि जो पानी मशक के ऊपर के भाग मे भरा गया है वह ऊपर के भाग मे ही रहेगा अर्थात् वायु के ऊपर के भाग में ही रहेगा, वायु के ऊपर ही ठहरेगा, नीचे नही जा सकता, क्योकि ऊपर के भाग मे जो पानी है, उसका आधार मशक के नीचे के भाग की वायु है। जैसे मशक में हवा के आधार पर पानी ऊपर रहता है वैसे ही पृथ्वी आदि भी हवा के आधार पर प्रतिष्ठित है।" देखें-भगवतीसूत्र, शतक १, उद्देशक ६ ।
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