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तत्त्वार्थसूत्र
[ १. ६-८ तत्त्वों को जानने के उपाय
प्रमाणनयैरधिगमः।६। प्रमाण और नयों से पदार्थों का ज्ञान होता है।
नय और प्रमारण का अन्तर-नय और प्रमाण दोनो ही ज्ञान है, परन्तु दोनों मे अन्तर यह है कि नय वस्तु के एक अंश का बोध कराता है और प्रमाण अनेक अंशों का । वस्तु मे अनेक धर्म होते है । किसी एक धर्म के द्वारा वस्तु का निश्चय करना, जैसे नित्यत्व-धर्म द्वारा 'आत्मा या प्रदीप आदि वस्तु नित्य है' ऐसा निश्चय करना नय है । अनेक धर्मो द्वारा वस्तु का अनेक रूप से निश्चय करना, जैसे नित्यत्व, अनित्यत्व आदि धर्मोद्वारा 'आत्मा या प्रदीप आदि वस्तु नित्यानित्य आदि अनेक रूप है' ऐसा निश्चय करना प्रमाण है। दूसरे शब्दों मे, नय प्रमाण का एक अंश मात्र है और प्रमाण अनेक नयों का समूह है, नय वस्तु को एक दृष्टि से ग्रहण करता है और प्रमाण अनेक दृष्टियों से । ६ ।
तत्त्वों के विस्तृत ज्ञान के लिए कुछ विचारणाद्वारो' का निर्देश निर्देशस्वामित्वसाधनाऽधिकरणस्थितिविधानतः।७।
सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालाऽन्तरभावाऽल्पबहुत्वैश्व । ८। निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान से; तथा सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्प-बहत्व से सम्यग्दर्शन आदि विषयों का ज्ञान होता है।
कोई भी जिज्ञासु जब पहले-पहल विमान आदि किसी नई वस्तु को देखता या उसका नाम सुनता है तब उसकी जिज्ञासा-वृत्ति जाग उठती है और इससे वह उस अदृष्टपूर्व या अश्रुतपूर्व वस्तु के संबंध मे अनेक प्रश्न करने लगता है। वह उस वस्तु के स्वभाव, रूप-रंग, उसके मालिक, बनाने के उपाय, रखने का स्थान, उसके टिकाऊपन की अवधि, उसके प्रकार आदि के संबंध मे नानाविध प्रश्न करता है और उन प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करके अपनी ज्ञानवृद्धि करता है। इसी तरह अन्तर्दृष्टि व्यक्ति भी मोक्षमार्ग को सुनकर या हेय-उपादेय
१. किसी भी वस्तु मे प्रवेश करने का मतलब है उसकी जानकारी प्राप्त करना और विचार करना । इसका मुख्य साधन उसके विषय मे विविध प्रश्न करना ही है। प्रश्नो का जितना स्पष्टीकरण मिले उतना ही उस वस्तु मे प्रवेश समझना चाहिए । अतः प्रश्न ही वस्तु में प्रवेश करने के अर्थात् विचारणा द्वारा उसकी तह तक पहुँचने के द्वार है। अतःविचारणा ( मीमांसा )-द्वार का मतलब हुआ प्रश्न । शास्त्रो मे उनको अनुयोगद्वार कहा गया है। अनुयोग अर्थात् व्याख्या या विवरण, उसके द्वार अर्थात् प्रश्न ।
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