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एक आत्मा में एक साथ पाये जानेवाले ज्ञान
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किसी आत्मा में एक साथ एक, किसी में दो, किसी में तीन और किसी में चार ज्ञान तक सम्भव है पर पांचों ज्ञान एक साथ किसी में नहीं होते । जब एक ज्ञान होता है, तब केवलज्ञान ही होता है क्योंकि परिपूर्ण होने से कोई अन्य अपूर्ण ज्ञान सम्भव ही नही है । जब दो ज्ञान होते है तब मति और श्रुत, क्योंकि पाँच ज्ञानों मे से नियत सहचारी ये ही दो ज्ञान है। शेष तीनों ज्ञान एक-दूसरे को छोड़कर भी रह सकते है । जब तीन ज्ञान होते है तब मति, श्रुत और अवधिज्ञान या मति, श्रुत और मनःपर्यायज्ञान होते है । तीन ज्ञान अपूर्ण अवस्था में ही सम्भव है और तब चाहे अवधिज्ञान हो या मनःपर्यायज्ञान, मति और श्रुत दोनों तो अवश्य होते है। जब चार ज्ञान होते है तब मति, श्रुत, अवधि और मन पर्याय होते है, क्योंकि ये ही चारों ज्ञान अपूर्ण अवस्थाभावी होने से एक साथ हो सकते है । केवलज्ञान का अन्य किसी ज्ञान के साथ साहचर्य नहीं है क्योंकि वह पूर्ण अवस्थाभावी है और शेष सभी ज्ञान अपूर्ण अवस्थाभावी हैं । पूर्णता तथा अपूर्णता दोनों अवस्थाएँ आपस में विरोधी होने से एक साथ आत्मा मे नहीं होती । दो, तीन या चार ज्ञानों को एक साथ शक्ति की अपेक्षा से सम्भव कहा गया है, प्रवृत्ति की अपेक्षा से नहीं ।
प्रश्न-इसे ठीक तरह से समझाइए।
उत्तर-जैसे मति और श्रुत दो ज्ञानवाला या अवधिसहित तीन ज्ञानवाला कोई आत्मा जिस समय मतिज्ञान के द्वारा किसी विषय को जानने में प्रवृत्त हो, उस समय वह अपने में श्रुत की शक्ति या अवधि की शक्ति होने पर भी उसका उपयोग करके तद्द्वारा उसके विषयों को नही जान सकता । इसी तरह वह श्रुतज्ञान की प्रवृत्ति के समय मति या अवधि की शक्ति को भी काम में नही ला सकता । यही बात मनःपर्याय की शक्ति के विषय मे है । सारांश यह है कि एक आत्मा में एक साथ अधिक-से-अधिक चार ज्ञान-शक्तियाँ हों तब भी एक समय में कोई एक ही शक्ति जानने का काम करती है, अन्य शक्तियाँ निष्क्रिय रहती है। ___ केवलज्ञान के समय मति आदि चारों ज्ञान नहीं होते । यह सिद्धान्त सामान्य होने पर भी उसकी उपपत्ति दो तरह से की जाती है। कुछ आचार्य कहते है कि केवलज्ञान के समय भी मति आदि चारों ज्ञान-शक्तियाँ रहती है पर वे सूर्यप्रकाश के समय ग्रह-नक्षत्र आदि के प्रकाश की तरह केवलज्ञान की प्रवृत्ति से अभिभूत हो जाने के कारण अपना-अपना ज्ञानरूप कार्य नहीं कर सकती । इसीलिए शक्तियां होने पर भी सवलज्ञाम के समय मति आदि ज्ञानपर्याय नहीं होते।
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