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२. २६-३१] अन्तराल गति सम्बन्धी योग आदि पाँच बातें
की बिलकुल सरल रेखा मे होता है और कभी वक्र रेखा में, क्योंकि पुनर्जन्म के नवीन स्थान का आधार पूर्वकृत कर्म है और कर्म विविध प्रकार का होता है। इसलिए संसारी जीव ऋजु और वक्र दोनों गतियों के अधिकारी है । सारांश यह है कि मुक्तिस्थान को जानेवालो आत्मा की एकमात्र सरलगति होती है और पुनर्जन्म के लिए स्थानान्तर को जाने वाले जीवों की सरल तथा वक्र दोनों गतियाँ होती है । ऋजुगति का दूसरा नाम इषुगति भी है, क्योंकि वह धनुष के वेग से प्रेरित बाण की गति की तरह पूर्व-शरीरजनित वेग के कारण सीधी होती है। वक्रगति के पाणिमुक्ता, लाङ्गलिका और गोमूत्रिका ये तीन नाम है। जिसमे एक बार सरल रेखा का भङ्ग हो वह पाणिमुक्ता, जिसमें दो बार हो वह लाङ्गलिका
और जिसमे तीन बार हो वह गोमूत्रिका । जीव को कोई भी ऐसी वक्रगति नहीं होती जिसमें तीन से अधिक घुमाव करने पड़ें, क्योंकि जीव का नया उत्पत्तिस्थान कितना ही विश्रेणिपतित ( वक्र रेखा स्थित ) क्यों न हो, वह तीन घुमाव मे तो अवश्य ही प्राप्त हो जाता है । पुद्गल की वक्रगति में घुमाव की सख्या का कोई नियम नही है, उसका आधार प्रेरक निमित्त है । २८-२९ ।
गति का कालमान-अन्तराल गति का कालमान जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चार समय है। जब ऋजुगति हो तब एक ही समय और जब वक्रगति हो तब दो, तीन या चार समय समझना चाहिए। समय को संख्या की वृद्धि घुमाव की संख्या की वृद्धि पर आधृत है। जिस वक्रगति मे एक घुमाव हो उसका कालमान दो समय का, जिसमें दो घुमाव हो उसका कालमान तीन समय का और जिसमे तीन घुमाव हों उसका कालमान चार समय का है। संक्षेप मे, जब एक विग्रह की गति से उत्पत्तिस्थान मे जाना हो तब पूर्वस्थान से घुमाव के स्थान तक पहुँचने में एक समय और घुमाव के स्थान से उत्पत्तिस्थान तक पहुँचने में दूसरा समय लग जाता है । इसी नियम के अनुसार दो विग्रह की गति में तीन समय और तीन विग्रह की गति में चार समय लग जाते है । यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि ऋजुगति से जन्मान्तर करनेवाले जीव के पूर्वशरीर त्यागते समय ही नये आयु और गति कर्म का उदय हो जाता है और वक्रगतिवाले जीव के प्रथम वक्र स्थान से नवीन आयु, गति और आनुपूर्वी नामकर्म का यथासम्भव उदय हो जाता है, क्योंकि प्रयम वक्रस्थान तक ही पूर्वभवीय आयु आदि का उदय रहता है । ३० ।
अनाहार का कालमान-मुच्यमान जीव के लिए तो अन्तराल गति मे आहार का प्रश्न ही नहीं रहता, क्योंकि वह सूक्ष्म व स्थूल सब शरीरों से मुक्त है। पर
१. ये पाणिमुक्ता आदि संज्ञाएं दिगम्बर व्याख्या-ग्रन्थो मे प्रसिद्ध है।
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