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तत्त्वार्थसूत्र
[ २. २६-३१
योग कहलाता है । इसी आशय से सूत्र मे विग्रहगति मे कार्मणयोग होने की बात कही गई है । सारांश, यह है कि वक्रगति से जानेवाला जीव केवल पूर्व-शरीरजन्य प्रयत्न से नये स्थान को नही पहुंच सकता, इसके लिए नया प्रयत्न कार्मण (सूक्ष्म) शरीर से ही साध्य है, क्योकि उस समय दूसरा कोई स्थूल शरीर नहीं होता है । स्थूल शरीर न होने से मनोयोग और वचनयोग भी नही होते । २६ ।।
गति का नियम-गतिशील पदार्थ दो ही है--जीव और पुद्गल । इन दोनों में गतिक्रिया की शक्ति है, इसलिए वे निमित्तवश गतिक्रिया में परिणत होकर गति करने लगते है। बाह्य उपाधि से भले ही वे वक्रगति करे, पर उनकी स्वाभाविक गति तो सीधी ही होती है । सीधी गति का आशय यह है कि पहले जिस आकाश-क्षेत्र मे जीव या परमाणु स्थित हों, वहाँ से गति करते हुए वे उसी आकाश-क्षेत्र की सरल रेखा मे ऊँचे, नीचे या तिरछे चाहे जहाँ चले जाते है । इसी स्वाभाविक गति को लेकर सूत्र में कहा गया है कि गति अनुश्रेणि होती है । श्रेणि अर्थात् पूर्वस्थान-प्रमाण आकाश की अन्यूनाधिक सरल रेखा । इस स्वाभाविक गति के वर्णन से सूचित होता है कि जब कोई प्रतिघातक कारण हो तब जीव या पुद्गल श्रेणि ( सरल रेखा) को छोड़कर वक्र-रेखा से भी गमन करते है । साराश, यह है कि गतिशील पदार्थो की गतिक्रिया प्रतिघातक निमित्त के अभाव मे पूर्वस्थान-प्रमाण सरल रेखा से ही होती है और प्रतिघातक निमित्त होने पर वक्ररेखा से भी होती है । २७ ।
गति का प्रकार--पहले कहा गया है कि गति ऋजु और वक्र दो प्रकार की है । ऋजुगति वह है जिसमे पूर्वस्थान से नये स्थान तक जाने मे सरल रेखा का भंग न हो अर्थात् एक भी घुमाव न हो। वक्रगति वह है जिसमे पूर्वस्थान से नये स्थान तक जाने मे सरल रेखा का भंग हो अर्थात् कम-से-कम एक घुमाव अवश्य हो । यह भी कहा गया है कि जीव और पुद्गल दोनो इन दोनों गतियों के अधिकारी है । यहाँ मुख्य प्रश्न जीव का है । पूर्व-शरीर छोड़कर स्थानान्तर जानेवाले जीव दो प्रकार के है । एक तो वे जो स्थूल और सूक्ष्म शरीर को सदा के लिए छोडकर जाते है, ये जीव मुच्यमान ( मोक्ष जानेवाले ) कहलाते है । दूसरे वे जो पूर्व-स्थूलशरीर को छोड़कर नये स्थूलशरीर को प्राप्त करते है। वे अन्तराल गति के समय सूक्ष्मशरीर से अवश्य वेष्टित होते है। ये जीव संसारी कहलाते है । मुच्यमान जीव मोक्ष के नियत स्थान पर ऋजुगति से ही जाते है, वक्रगति से नही, क्योंकि वे पूर्वस्थान की सरल रेखावाले मोक्षस्थान मे ही प्रतिष्ठित होते है, किंचित् भी इधर-उधर नही । परन्तु संसारी जीव के उत्पत्तिस्थान का कोई नियम नहीं है। कभी तो उनको जहां उत्पन्न होना हो वह नया स्थान पूर्वस्थान
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