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तत्त्वार्थ सूत्र
[ २. ३२-३६
पानी की तरह मिल जाते है, उसी को योनि कहते है । योनि नौ प्रकार की हैसक्ति, शीत, संवृत, अचित्त, उष्ण, विवृत, सचित्ताचित्त, शीतोष्ण और संवृतविकृत । १. सचित्त - जो जीव- प्रदेशो से अधिष्ठित हो, २. अचित्त - जो अधिछित न हो, ३. मिश्र — जो कुछ भाग मे अधिष्ठित हो, कुछ भाग में न हो, ४. खोत - जिस उत्पत्तिस्थान में शीत स्पर्श हो, ५. उष्ण — जिसमे उष्ण स्पर्श हो, ६. मिश्र - जिसके कुछ भाग मे शीत कुछ भाग मे उष्ण स्पर्श हो, ७. संवृत — जो उत्पत्तिस्थान ढका या दबा हो, ८. विवृत — जो ढका न हो, खुला हो, ९. मिश्र - जो कुछ ढका तथा कुछ खुला हो ।
तथा
६८
किस-किस योनि मे कौन-कौन से जीव उत्पन्न होते हैं, इसका विवरण इस
अमर है :
जीव
नारक और देव
मर्मच मनुष्य और तिर्यंच
शेष सब अर्थात् पाँच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय और अगर्भज पञ्चेन्द्रिय तिर्यच तथा मनुष्य
गर्मन मनुष्य और तिर्यच तथा देव ' वेब: कायिक ( अग्निकायिक )
शेष सब अर्थात् चार स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, अगर्भज पञ्चेन्द्रिय तिर्यच और मनुष्य तथा नारक
नारक, देव और एकेन्द्रिय
गर्भज पञ्चेन्द्रिय तिर्यच और मनुष्य
शेष सब अर्थात् तीन विकलेन्द्रिय, अपर्भन पञ्चेन्द्रिय मनुष्य व तिर्यच
प्रश्न
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}
योनि
अचित्त
मिश्र ( सचित्ताचित्त )
त्रिविध - सचित्त, अचित्त तथा मिश्र ( सचित्ताचित्त )
-योनि और जन्म मे क्या अन्तर है ?
मिश्र (शीतोष्ण )
उष्ण
त्रिविध - शीत, उष्ण और मिश्र ( शीतोष्ण )
संवृत
मिश्र ( संवृतविवृत )
} विवृत
५. दिगम्बर टीका ग्रन्थों में शीत और उग योनियो के स्वामी देव और नारक माने गए हैं । चदनुसार वहा शीत, ष्ण आदि विविध योनियों के स्वाभियों में नारक जीवो को न गिनकर गर्भज मनुष्यो और तिर्यचो को गिनना चाहिए 1
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