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तत्त्वार्थसूत्र
[१. ३४-३५ २. जो विचार शब्द-प्रधान होकर अनेक शाब्दिक धर्मो की ओर झुककर तदनुसार अर्थ-भेद की कल्पना करता है वह शब्दनय है।।
श्री उमास्वाति द्वारा सूत्र मे निर्देशित शब्दनय के तीन भेदों में से प्रथम भेद साम्प्रत है । अर्थात् शब्दनय यह सामान्य पद साम्प्रत, समभिरूढ और एवंभूत इन तीनों भेदों को व्याप्त कर लेता है, परन्तु प्रचलित सब परम्पराओं में साम्प्रत नामक पहले भेद में ही 'शब्दनय' यह सामान्य पद रूढ हो गया है और साम्प्रतनय पद का स्थान शब्दनय पद ने ले लिया है। इसलिए यहाँ पर साम्प्रत नय की सामान्य व्याख्या न कर आगे विशेष स्पष्टीकरण करते समय शब्दनय पद का ही व्यवहार किया गया है । उसका जो स्पष्टीकरण किया गया है वही भाष्यकथित साम्प्रत नय का स्पष्टीकरण है।
३. जो विचार शब्द की व्युत्पत्ति के आधार पर अर्थ-भेद की कल्पना करता है वह समभिरूढ़नय है ।
४. जो विचार शब्द से फलित होनेवाले अर्थ के घटने पर ही वस्तु को उस रूप मे मानता है, अन्यथा नहीं, वह एवंभूतनय है ।
ऋजुसूत्रनय यद्यपि मनुष्य की कल्पना भूत और भविष्य की सर्वथा उपेक्षा करके नही चलती तथापि मनुष्य की बुद्धि कई बार तात्कालिक परिणाम की ओर झुककर वर्तमान में ही प्रवृत्ति करने लगती है। ऐसी स्थिति में मनुष्य-बुद्धि ऐसा मानने लगती है कि जो उपस्थित है वही सत्य है, वही कार्यकारी है
और भूत तथा भावी वस्तु वर्तमान मे कार्यसाधक न होने से शून्यवत् है । वर्तमान समृद्धि ही सुख का साधन होने से समृद्धि कही जा सकती है । भूत-समृद्धि का स्मरण या भावी-समृद्धि की कल्पना वर्तमान मे सुख-साधक न होने से समृद्धि नहीं कही जा सकती । इसी तरह पुत्र मौजूद हो और वह माता-पिता की सेवा करे, तब तो पुत्र है । किन्तु जो पुत्र अतीत हो या भावी हो पर मौजूद न हो, वह पुत्र ही नही । इस तरह केवल वर्तमानकाल से सम्बन्ध रखनेवाले विचार ऋजुसूत्रनय की कोटि मे आते है ।
शब्दनय-जब विचार की गहराई मे उतरनेवाली बुद्धि एक बार भूत और भविष्यत् की जड़ काटने पर उतारू हो जाती है तब वह उससे भी आगे बढ़कर किसी दूसरी जड को भी काटने को तैयार होने लगती है । वह भी मात्र शब्द को पकड़कर प्रवृत्त होती है और ऐसा विचार करने लगती है कि यदि भूत या भावी से पृथक् होने के कारण केवल वर्तमानकाल मान लिया जाय, तब तो एक ही अर्थ मे व्यवहृत होनेवाले भिन्न-भिन्न लिङ्ग, काल, सख्या, कारक, पुरुष और उपसर्गयुक्त शब्दों के अर्थ भी अलग-अलग क्यों न माने जायें ? जैसे तीनों कालों
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