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जीव
प्रथम अध्याय मे सात पदार्थो का नामनिर्देश किया गया है। आगे के नौ अध्यायों में क्रमश. उनका विशेष विचार किया गया है । इस अध्याय मे 'जीव' पदार्थ का तत्त्वस्वरूप उसके भेद-प्रभेद आदि विषयों का वर्णन किया जा रहा है।
पाँच भाव, उनके भेद और उदाहरण औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च । १। द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् । २ । सम्यक्त्वचारित्रे । ३। ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च । ४। ज्ञानाज्ञानदर्शनदानादिलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदाः यथाक्रमं सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च । ५। गतिकषायलिङ्गमिथ्यादर्शनाऽज्ञानाऽसंयताऽसिद्धत्वलेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्येकैकैकैकषड्भेदाः।६। जीवभव्याभव्यत्वादीनि च । ७।
औपशमिक, क्षायिक और मिश्र (क्षायोपशमिक ) ये तीन तथा औदयिक, पारिणामिक ये दो, कुल पाँच भाव हैं । ये जीव के स्वरूप हैं। __उक्त पाँच भावों के अनुक्रम से दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन भेद हैं।
सम्यक्त्व और चारित्र ये दो औपशमिक भाव हैं ।
ज्ञान, दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, सम्यक्त्व और चारित्र ये नौ क्षायिक भाव हैं।
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