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तत्त्वार्थसूत्र
[२. २१-२२
अर्थात इन चार प्रकारों की समष्टि ही स्पर्शन आदि एक-एक पूर्ण इन्द्रिय है। इस समष्टि में जितनी न्यूनता है उतनी ही इन्द्रिय की अपूर्णता है।'
प्रश्न-उपयोग तो ज्ञान-विशेष है जो इन्द्रिय का फल है; उसको इन्द्रिय कैसे कहा गया ?
उत्तर-यद्यपि लब्धि, निर्वृत्ति और उपकरण इन तीनों को समष्टि का कार्य उपयोग है तथापि यहाँ उपचार से अर्थात् कार्य में कारण का आरोप करके उसे भी इन्द्रिय कहा गया है । २० ।
___ इन्द्रियो के ज्ञेय अर्थात् विषय स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तेषामर्थाः । २१ ।
श्रुतमनिन्द्रियस्य । २२। स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण ( रूप ) और शब्द ये पाँच क्रमशः पाँच इन्द्रियों के अर्थ ( ज्ञेय या विषय ) हैं ।
अनिन्द्रिय ( मन ) का विषय श्रुत है।
जगत् के सब पदार्थ एक-से नहीं है। कुछ पदार्थ मूर्त है और कुछ अमूर्त । वे मूर्त है जिनमे वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि हों। मूर्त पदार्थ ही इन्द्रियों से जाने जा सकते है, अमूर्त पदार्थ नही। पांचो इन्द्रियो के जो भिन्न-भिन्न विषय बतलाये गए है वे आपस में सर्वथा भिन्न और मूलतत्त्व (द्रव्यरूप) नही किन्तु एक ही द्रव्य के भिन्न-भिन्न अश ( पर्याय ) है अर्थात् पाँचों इन्द्रियाँ एक ही द्रव्य की पारस्परिक भिन्न-भिन्न अवस्था-विशेष को जानने में प्रवृत्त होती है । अतएव इस सूत्र मे पाँच इन्द्रियों के जो पाँच विषय बतलाये गए है उन्हे स्वतन्त्र या अलग-अलग नहीं, अपितु एक ही मूर्त (पौद्गलिक ) द्रव्य के अंश समझना चाहिए । जैसे एक लड्डू को पाँचों इन्द्रियाँ भिन्न-भिन्न रूप मे जानती है । अगुली छकर उसके शीत-उष्ण आदि स्पर्श का ज्ञान कराती है। जीभ चखकर उसके खट्टे-मीठे आदि रस का ज्ञान कराती है। नाक संघकर उसकी खुशबू या बदबू का ज्ञान कराता है। आँख देखकर उसके लाल, सफेद आदि रंग का ज्ञान कराती है। कान उस कडे लडडू को खाने आदि से उत्पन्न शब्दों या ध्वनि का ज्ञान कराता है । यह बात नहीं है कि उस लड्डू में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, और शब्द इन पाँचों विषयों का स्थान अलग-अलग होता है । वे सभी उसके सब भागों
१. इनके विशेष विचार के लिए देखे-हिन्दी चौथा कर्मग्रन्थ, पृ० ३६, 'इन्द्रिय' शब्दविषयक परिशिष्ट ।
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