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२. २३-२५ ]
इन्द्रियो के स्वामी काय, तेज.काय, वायुकाय ये पांच स्थावर तथा द्वीन्द्रिय आदि चार त्रस । इनमे से वायुकाय तक के पाँच निकायों के केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय होती है ।
कृमि, जलौका, लट आदि के दो इन्द्रियाँ होती है-स्पर्शन और रसन । चीटी, कुथु, खटमल आदि के तीन इन्द्रियाँ होती है-स्पर्शन, रसन और घ्राण । भौरे, मक्खी, बिच्छू, मच्छर आदि के चार इन्द्रियाँ होती है--स्पर्शन, रसन, प्राण और नेत्र । मनुष्य, पशु, पक्षी तथा देव-नारक के पाँच इन्द्रियाँ होती है-स्पर्शन, रसन, घ्राण, नेत्र तथा श्रोत्र ।
प्रश्न-यह संख्या द्रव्येन्द्रिय की है या भावेन्द्रिय की अथवा उभयेन्द्रिय की ?
उत्तर-उक्त संख्या केवल द्रव्येन्द्रिय की है, कुछ जीवों में द्रव्येद्रियाँ कम होने पर भी पांचों भावेन्द्रियाँ तो सभी जीवों के होती है।
प्रश्न-तो क्या कृमि आदि जीव भावेन्द्रिय के बल से देख या सुन लेते हैं ?
उत्तर-नहीं, केवल भावेन्द्रिय काम करने में समर्थ नहीं, उसे द्रव्येन्द्रिय का सहारा चाहिए । इसीलिए भावेन्द्रियों के होने पर भी कृमि या चीटी आदि नेत्र तथा कर्ण द्रव्येन्द्रिय न होने से देखने-सुनने में असमर्थ है। फिर भी वे जीव अपनीअपनी द्रव्येन्द्रिय की पटुता के कारण जीवन-यात्रा चला ही लेते है ।
पृथिवीकाय से लेकर चतुरिन्द्रिय पर्यन्त आठ निकायों के तो मन होता ही नहीं, पञ्चेन्द्रियों में भी सबके मन नही होता । पञ्चेन्द्रिय जीवों के चार वर्ग हैदेव, नारक, मनुष्य और तिर्यश्च । पहले दो वर्गों मे तो सभी के मन होता है और शेष दो वर्गो मे से उन्हीं के होता है जो गर्भोत्पन्न हों। मनुष्य और तिर्यञ्च गर्भोत्पन्न तथा संमूछिम दो-दो प्रकार के होते है । संमूछिम मनुष्य और तिर्यञ्च के मन नही होता । सारांश, यह है कि पञ्चेन्द्रियों में सब देवों, सब नारकों, गर्भजमनुष्यों तथा गर्भज-तिर्यश्चों के ही मन होता है ।
प्रश्न-- इसकी क्या पहचान है कि किस के मन है और किस के नही है ? उत्तर---इसकी पहचान संज्ञा का होना या न होना है।
प्रश्न-वृत्ति को संज्ञा कहते है। न्यूनाधिक रूप मे किसी-न-किसी प्रकार की वृत्ति सभी में होती है, क्योंकि कृमि, चीटी आदि मे भी आहार, भय आदि वृत्तियाँ है । फिर इन जीवों में मन क्यों नही माना जाता ?
उत्तर--यहाँ संज्ञा का अर्थ साधारण वृत्ति नहीं, विशिष्ट वृत्ति है ।' वह १. इसके स्पष्टीकरण के लिए देखे-हिन्दी चौथा कर्मग्रन्थ, पृ० ३८ पर 'संज्ञा' शब्द का परिशिष्ट ।
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