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तत्त्वार्थसूत्र
[२. १५-२० गतित्रस हैं। ये उपचार मात्र से त्रस है जैसे तेजःकायिक और वायुकायिक । १३-१४ ।
इन्द्रियों की संख्या, उनके भेद-प्रभेद और नाम-निर्देश
पञ्चेन्द्रियाणि । १५ । द्विविधानि । १६ । निर्वृत्त्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् । १७ । लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् । १८ । उपयोगः स्पर्शादिषु । १९ ।
स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि । २० । इन्द्रियां पांच हैं। प्रत्येक इन्द्रिय दो-दो प्रकार की है। द्रव्येन्द्रिय निवृत्ति और उपकरणरूप है । भावेन्द्रिय लब्धि और उपयोगरूप है। उपयोग स्पर्श आदि विषयों में होता है। स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये इन्द्रियों के नाम हैं।
यहां इन्द्रियों की संख्या के निर्देश का उद्देश्य यह है कि यह ज्ञात किया जा सके कि संसारी जीवों के कितने विभाग हो सकते है । इन्द्रियाँ पाँच है । सभी संसारी जीवों के पाँच इन्द्रियाँ नहीं होती। कुछ के एक, कुछ के दो, इस तरह एक-एक बढ़ाते-बढ़ाते कुछ के पाँच इन्द्रियाँ तक होती है। एक इन्द्रियवाले एकेन्द्रिय, दो वाले द्वीन्द्रिय, इसी तरह त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय इस प्रकार संसारी जीवों के पाँच भेद होते है।
प्रश्न--इन्द्रिय का क्या अर्थ है ? उत्तर--जिससे ज्ञान प्राप्त हो वह इन्द्रिय है । प्रश्न--क्या इन्द्रियाँ पांच से अधिक नही है ?
उत्तर---नही, ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच ही है । यद्यपि सांख्य आदि शास्त्रों में वाक, पाणि, पाद, पायु ( गुदा ) और उपस्थ ( लिङ्ग या जननेन्द्रिय ) को भी इन्द्रिय कहा गया है, परन्तु वे कर्मेन्द्रियाँ हैं । ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच से अधिक नही है और यहाँ उन्हीं का उल्लेख है ।
प्रश्न--ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय का क्या अर्थ है ?
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