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२. ११ - १४ ]
संसारी जीवों के भेद-प्रभेद
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उत्तर - द्रव्यमन की अपेक्षा से, अर्थात् जैसे अत्यन्त बूढ़ा मनुष्य पाँव और चलने की शक्ति होने पर भी लकडी के सहारे के बिना नही चल सकता, वैसे ही भावमन होने पर भी द्रव्यमन के बिना स्पष्ट विचार नहीं किया जा सकता । इसी कारण द्रव्यमन की प्रधानता मानकर उसके भाव और अभाव की अपेक्षा से मनसहित और मनरहित विभाग किये गए है ।
प्रश्न- दूसरा विभाग करने का यह अर्थ तो नही है कि सभी त्रस समनस्क और सभी स्थावर अमनस्क है ?
उत्तर——नहीं, त्रस में भी कुछ ही समनस्क होते हैं, सब नहीं । स्थावर तो सभी अमनस्क ही होते है । ११-१२ ।
स्थावर जीवों के पृथिवीकाय, जलकाय और वनस्पतिकाय ये तीन भेद है और त्रस जीवों के तेजःकाय, वायुकाय ये दो भेद तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय ये चार भेद भी है ।
प्रश्न - त्रस और स्थावर का अर्थ क्या है ?
उत्तर — जिसके त्रस नाम-कर्म का उदय हो वह त्रस जीव और जिसके स्थावर नाम कर्म का उदय हो वह स्थावर जीव ।
प्रश्न - त्रस नाम-कर्म के उदय की और स्थावर नाम-कर्म के उदय की पहचान क्या है ?
उत्तर- - दु.ख त्यागने और सुख दिखाई देना और न दिखाई देना ही स्थावर नाम-कर्म के उदय की पहचान है ।
प्राप्त करने की प्रवृत्ति का स्पष्ट रूप मे क्रमशः त्रस नाम-कर्म के उदय की और
प्रश्न -- क्या द्वीन्द्रिय आदि जीवों की तरह तेजःकायिक और वायुकायिक जीव भी उक्त प्रवृत्ति करते हुए स्पष्ट दिखाई देते हैं कि उनको त्रस माना जाय ?
उत्तर- - नहीं ।
प्रश्न - तो फिर पृथिवीकायिक आदि की तरह उनको स्थावर क्यों नहीं कहा गया ?
उत्तर—उक्त लक्षण के अनुसार वे वास्तव में स्थावर ही है । यहाँ द्वीन्द्रिय आदि के साथ गति का सादृश्य देखकर उनको त्रस कहा गया है अर्थात् त्रस दो प्रकार के है -- लब्धित्रस और गतित्रस । त्रस नाम-कर्म के उदयवाले लब्धित्रस हैं, ये ही मुख्य त्रस है जैसे द्वीन्द्रिय से पञ्चेन्द्रिय तक के जीव । स्थावर नाम-कर्म का उदय होने पर भी त्रस जैसी गति होने के कारण जो त्रस कहलाते हैं वे
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