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तत्त्वार्थसूत्र
[२.९
लक्षण और उपलक्षण में यही अन्तर है कि जो प्रत्येक लक्ष्य मे सर्वात्मभाव से तीनो कालो मे पाया जाय, वह लक्षण है, जैसे अग्नि मे उष्णत्व; और जो किसी लक्ष्य मे हो और किसी मे न हो, कभी हो और कभी न हो तथा स्वभाव सिद्ध न हो, वह उपलक्षण है, जैसे अग्नि के लिए धूम । जीवत्व को छोड़कर भावो के बावन भेद आत्मा के उपलक्षण ही है । ८ ।
उपयोग की विविधता
स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः । ९ । वह उपयोग दो प्रकार का है तथा आठ और चार प्रकार का है।
जानने की शक्ति ( चेतना ) समान होने पर भी जानने की क्रिया ( बोधव्यापार या उपयोग ) सब आत्माओं मे समान नहीं होती। उपयोग की यह विविधता बाह्य-आभ्यन्तर कारणकलाप की विविधता पर अवलम्बित है। विषयभेद, इन्द्रिय आदि साधन-भेद, देश-काल-भेद इत्यादि विविधता बाह्य सामग्री की है । आवरण की तीव्रता-मन्दता का तारतम्य आन्तरिक सामग्री की विविधता है । इस सामग्री-वैचित्र्य के कारण एक आत्मा भिन्न-भिन्न समय मे भिन्न-भिन्न प्रकार की बोधक्रिया करती है और अनेक आत्माएँ एक ही समय में भिन्न-भिन्न बोधक्रियाएँ करती है। बोध की यह विविधता अनुभवगम्य है। इसको संक्षेप में वर्गीकरण द्वारा बतलाना ही इस सूत्र का प्रयोजन है।
उपयोगराशि के सामान्य रूप से दो विभाग किये जाते है-१. साकार, २. अनाकार । विशेष रूप से साकार-उपयोग के आठ और अनाकार-उपयोग के चार विभाग किये गए है। इस तरह उपयोग के कुल बारह भेद है।
साकार-उपयोग के आठ भेद ये है-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यायज्ञान, केवलज्ञान, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभङ्गज्ञान । अनाकार-उपयोग के चार भेद ये है-चक्षुर्दर्शन, अचक्षुर्दर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन ।
प्रश्न-साकार और अनाकार उपयोग का अर्थ क्या है ?
उत्तर-जो बोध ग्राह्यवस्तु को विशेष रूप से जाननेवाला है वह साकारउपयोग है और जो बोध ग्राह्यवस्तु को सामान्य रूप से जाननेवाला है वह अनाकार-उपयोग है । साकार-उपयोग को ज्ञान या सविकल्पक बोध और अनाकारउपयोग को दर्शन या निर्विकल्पक बोध कहते है ।
प्रश्न-उक्त बारह भेदो मे से कितने भेद पूर्ण विकसित चेतनाशक्ति के व्यापार हैं और कितने अपूर्ण विकसित चेतनाशक्ति के ?
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