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तत्वार्थ सूत्र
[ १. ३४-३५
'राजा', मनुष्यों का रक्षण करनेवाला 'नृप' तथा पृथ्वी का पालन - संवर्धन करनेवाला 'भूपति' है । इस तरह उक्त तीनों नामों के एक ही अर्थ में व्युत्पत्ति के अनुसार अर्थभेद माननेवाला विचार समभिरूढनय है । पर्याय-भेद से की जानेवाली अर्थभेद की सभी कल्पनाएँ समभिरूढ़नय की कोटि में आती है ।
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एवंभूतनय - विशेष रूप से गहराई मे जानेवाली बुद्धि अन्तिम गहराई में पहुँचने पर विचार करती है कि यदि व्युत्पत्तिभेद से अर्थभेद माना जा सकता है, तब तो ऐसा भी मानना चाहिए कि जब व्युत्पत्ति- सिद्ध अर्थ घटित होता हो, तभी उस शब्द का वह अर्थ स्वीकार करना चाहिए तथा उस शब्द के द्वारा उस अर्थ का प्रतिपादन करना चाहिए, अन्यथा नही । इस कल्पना के अनुसार किसी समय राजचिह्नों से शोभित होने की योग्यता को धारण करना, अथवा मनुष्यरक्षण के उत्तरदायित्व को प्राप्त करना मात्र ही 'राजा' या 'नृप' कहलाने के लिए पर्याप्त नही । 'राजा' तो वास्तव मे तभी कहला सकता है जब राजदण्ड धारण करता हुआ उससे शोभायमान हो रहा हो; इसी तरह 'नृप' तब कहना चाहिए जब वह मनुष्यों का रक्षण कर रहा हो । साराश, किसी व्यक्ति के लिए राजा या नृप शब्द का प्रयोग करना तभी ठीक है जब उसमे शब्द का व्युत्पत्ति- सिद्ध अर्थ भी घटित होता हो ।
इसी तरह जब कोई सेवा कर रहा हो, उसी समय या उतनी बार ही उसे 'सेवक' नाम से पुकारा जा सकता है । वास्तव मे जब कोई क्रिया हो रही हो तभी उनसे सम्बन्धित विशेषण या विशेष्य नाम का व्यवहार एवंभूतनय कहलाता है ।
शेष वक्तव्य-उक्त चारो प्रकार की विचार- कोटियों का अन्तर तो उदाहरणों से ही स्पष्ट हो सकता है । उसे अलग से लिखने की आवश्यकता नही । हाँ, इतना अवश्य है कि पूर्व - पूर्व नय की अपेक्षा उत्तर-उत्तर नय सूक्ष्म और सूक्ष्मतर होता जाता है | अतएव उत्तर-उत्तर नय का विषय पूर्व-पूर्व नय के विषय पर ही अवलम्बित रहता है । इन चारो नयों का मूल पर्यायार्थिक नय है । यह बात इसलिए कही गई है कि ऋजुसूत्र केवल वर्तमान को ही स्वीकार करता है, भूत और भविष्यत् को नही । अतः यह स्पष्ट है कि इसका विषय सामान्य न रहकर विशेष रूप से ही ध्यान मे आता है; अर्थात् वास्तव मे ऋजुसूत्र से ही पर्यायार्थिक नय - विशेषगामिनी दृष्टि- का आरम्भ माना जाता है । ऋजुसूत्र के बाद के तीन यतो उत्तरोत्तर और भी अधिक विशेषगामी बनते जाते है । इस तरह उनका पर्यायार्थिक होना तो स्पष्ट ही है ।
इन चार नयों में भी, जब कि उत्तर नय को पूर्व नय की अपेक्षा सूक्ष्म कहा जाता है, तब वह पूर्व नय उतने अश मे तो उत्तर नय की अपेक्षा सामान्यगामी ही
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