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१. ३४-३५ ]
नय के भेद
में कोई सूत्ररूप एक वस्तु नही है, किन्तु वर्तमान स्थित वस्तु ही एकमात्र वस्तु कहलाती है, वैसे ही भिन्न-भिन्न लिङ्ग, संख्या और कालादि से युक्त शब्दों द्वारा कही जानेवाली वस्तुएँ भी भिन्न-भिन्न ही मानी जानी चाहिए । ऐसा विचार करके बुद्धि काल और लिङ्गादि के भेद से अर्थ में भी भेद मानने लगती है ।
उदाहरणार्थ, शास्त्र मे एक ऐसा वाक्य मिलता है कि 'राजगृह नाम का नगर था' । इस वाक्य का मोटे तौर पर यह अर्थ होता है कि राजगृह नाम का नगर भूतकाल मे था, वर्तमानकाल मे नही है; जब कि लेखक के समय मे भी राजगृह विद्यमान है । यदि वर्तमान मे है, तब उसको 'था' क्यों इसका उत्तर शब्दनय देता है कि वर्तमान मे विद्यमान राजगृह से राजगृह तो भिन्न ही है और उसी का वर्णन प्रस्तुत होने से 'राजगृह था' कहा गया है । यह कालभेद से अर्थभेद का उदाहरण है ।
लिखा गया ?
भूतकाल का
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लिङ्गभेद से अर्थभेद : जैसे कुआँ, कुई । यहाँ पहला शब्द नर जाति का और दूसरा नारी जाति का है । इन दोनों का कल्पित अर्थभेद भी व्यवहार मे प्रसिद्ध है । कितने ही तारे नक्षत्र नाम से पुकारे जाते हैं, फिर भी इस शब्दनय के अनुसार 'अमुक तारा नक्षत्र है' अथवा 'यह मघा नक्षत्र है' ऐसा शब्द - व्यवहार नहीं किया जा सकता । क्योंकि इस नय के अनुसार लिङ्गभेद से अर्थभेद माने जाने के कारण 'तारा और नक्षत्र' एवं 'मघा और नक्षत्र' इन दोनों शब्दों का एक ही अर्थ में प्रयोग नही कर सकते ।
संस्थान (आकार), प्रस्थान ( गमन ), उपस्थान ( उपस्थिति ) इसी प्रकार आराम, विराम इत्यादि शब्दों में एक ही धातु होने पर भी उपसर्ग के लग जाने से जो अर्थ-भेद हो जाता है उसी से शब्दनय की भूमिका बनती है ।
इस तरह विविध शाब्दिक धर्मों के आधार पर जो अर्थ-भेद की अनेक मान्यताएँ प्रचलित है, वे सभी शब्दनय की कोटि मे आती है ।
समभिरूढ़नय -- शाब्दिक धर्मभेद के आधार पर अर्थभेद करनेवाली बुद्धि ही जब और आगे बढकर व्युत्पत्तिभेद का आश्रय लेने लगती है और ऐसा मानने पर उतारू हो जाती है कि जहाँ अनेक भिन्न-भिन्न शब्दों का एक अर्थ मान लिया जाता है, वहाँ भी वास्तव मे उन सभी शब्दों का एक अर्थ नही हो सकता, किन्तु अलग-अलग अर्थ है । यदि लिङ्गभेद और संख्याभेद आदि से अर्थभेद मान सकते है, तब शब्दभेद भी अर्थ का भेदक क्यो नही दलील से वह बुद्धि राजा, नृप, अनुसार अलग-अलग अर्थ करती
मान लिया जाता ? इस भूपति आदि एकार्थक शब्दों के भी व्युत्पत्ति के है और कहती है कि राजचिह्नों से शोभित
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