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२. १-७ ] पाँच भावों के भेद और उदाहरण
४९ उक्त पांचों भावों के कुल ५३ भेदों का निर्देश इस सूत्र में है, जो आगे के सूत्रों मे नामपूर्वक क्रमशः इस प्रकार बतलाये गए है कि किस भाववाले कितनेकितने पर्याय है और कौन-कौन-से है । २।।
प्रौपशमिक भाव के भेद-दर्शन-मोहनीय कर्म के उपशम से सम्यक्त्व का और चारित्र-मोहनीय कर्म के उपशम से चारित्र का आविर्भाव होता है। इसलिए सम्यक्त्व और चारित्र ये दो ही पर्याय औपशमिक भाववाले है । ३ ।
क्षायिक भाव के भेद--केवलज्ञानावरण के क्षय से केवलज्ञान, केवलदर्शनावरण के क्षय से केवलदर्शन, पंचविध अन्तराय के क्षय से दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य ये पाँच लब्धियाँ, दर्शन-मोहनीय कर्म के क्षय से सम्यक्त्व तथा चारित्र-मोहनीय कर्म के क्षय से चारित्र का आविर्भाव होता है । इसीलिए केवलज्ञानादि नवविध पर्याय क्षायिक कहलाते हैं । ४ ।
क्षायोपशमिक भाव के भेद-मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण और मनःपर्यायज्ञानावरण के क्षयोपशम से मति, श्रुत, अवधि और मनपर्यायज्ञान का आविर्भाव होता है। मति-अज्ञानावरण, श्रुत-अज्ञानावरण और विभङ्ग-ज्ञानावरण के क्षयोपशम से मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभङ्गज्ञान का आविर्भाव होता है । चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण के क्षयोपशम से चक्षुर्दर्शन, अचक्षुर्दर्शन और अवधिदर्शन का आविर्भाव होता है । पञ्चविध अन्तराय के क्षयोपशम से दान, लाभ आदि पाँच लब्धियों का आविर्भाव होता है । अनन्तानुबन्धी चतुष्क तथा दर्शनमोहनीय के क्षयोपशम से सम्यक्त्व का आविर्भाव होता है । अनन्तानुबन्धी आदि बारह प्रकार के कषायों के क्षयोपशम से चारित्र ( सर्वविरति ) का आविर्भाव होता है । अनन्तानुबन्धी आदि अष्टविध कषाय के क्षयोपशम से संयमासंयम ( देशविरति ) का आविर्भाव होता है । इस तरह मतिज्ञान आदि अठारह पर्याय क्षायोपशमिक है । ५ ।।
प्रौदयिक भाव के भेद-गति नाम-कर्म के उदय का फल नरक, तिर्यश्च, मनुष्य और देव ये चार गतियाँ है। कषायमोहनीय के उदय से क्रोध, मान, माया व लोभ ये चार कषाय पैदा होते है । वेदमोहनीय के उदय से स्त्री, पुरुष और नपुसक बेद होता है । मिथ्यात्वमोहनीय के उदय से मिथ्यादर्शन ( तत्त्व का अश्रद्धान ) होता है। अज्ञान ( ज्ञानाभाव ) ज्ञानावरणीय कर्म के उदय का फल है । असंयतत्व( विरति का सर्वथा अभाव ) अनन्तानुबन्धी आदि बारह प्रकार के चारित्र-मोहनीय के उदय का परिणाम है । असिद्धत्व (शरीरधारण) वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र कर्म के उदय का परिणाम है । कृष्ण, नील, कापोत, तेजः, पद्म और शुक्ल ये छः लेश्याएँ ( कषायोदयरञ्जित योगपरिणाम) कषाय
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