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१. ३४-३५ ]
नय के भेद
तरफ दृष्टि डालने पर जब जल के रंग, स्वाद, उसकी गहराई या छिछलापन, विस्तार तथा सीमा इत्यादि विशेषताओं की ओर ध्यान न जाकर केवल जल-हीजल ध्यान मे आता है तब वह मात्र जल का सामान्य विचार कहलाता है और यही जल-विषयक द्रव्यार्थिक नय है । लेकिन जब रंग, स्वाद आदि विशेषताओं की ओर ध्यान जाता है तब वह विचार जल की विशेषताओं का होने से जलविषयक पर्यायार्थिक नय कहा जायेगा ।
इसी तरह अन्य सभी भौतिक पदार्थो के विषय मे समझना चाहिए । विभिन्न स्थलो मे फैली हुई जल जैसी एक ही तरह की नाना वस्तुओं के विषय में जिस प्रकार सामान्य और विशेष विचार करना सम्भव है, वैसे ही भूत, वर्तमान और भविष्य इस त्रिकालरूप अपार पट पर फैले हुए आत्मादि किसी एक पदार्थ के विषय मे भी सामान्य और विशेष विचार सर्वथा सम्भव है | काल तथा अवस्थाभेदकृत चित्रों पर ध्यान न देकर जब केवल शुद्ध चैतन्य की ओर ध्यान जाता है, तब वह उसके विषय का द्रव्यार्थिक नय कहा जायेगा । चैतन्य की देश कालादिकृत विविध दशाओं पर जब ध्यान जायेगा तब वह चैतन्य विषयक पर्यायार्थिक नय कहा जायेगा ।
विशेष भेदों का स्वरूप - १. जो विचार लौकिक रूढ़ि अथवा लौकिक संस्कार के अनुसरण से पैदा होता है वह नैगमनय है ।
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श्री उमास्वाति द्वारा निर्देशित नैगम नय के दो भेदों की व्याख्या इस प्रकार है - घट-पट जैसे सामान्यबोधक नाम से जब एकाध घट-पट जैसी अर्थवस्तु ही विचार में ग्रहण की जाती है तब वह विचार देश- परिक्षेपी नैगम कहलाता है और जब उस नाम से विवक्षित होनेवाले अर्थ की सम्पूर्ण जाति विचार में ग्रहण की जाती है तब वह विचार सर्वपरिक्षेपी नैगम कहलाता है ।
२. जो विचार भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुओं को तथा अनेक व्यक्तियों को किसी भी सामान्य तत्त्व के आधार पर एक रूप में संकलित करता है वह संग्रहनय है ।
३. जो विचार सामान्य तत्त्व के आधार पर एक रूप मे संकलित वस्तुओं का व्यावहारिक प्रयोजन के अनुसार पृथक्करण करता है वह व्यवहारनय है ।
इन तीनों नयों का उद्गम द्रव्यार्थिक की भूमिका में निहित है, अतः ये तीनों न द्रव्यार्थिक प्रकृतिवाले कहलाते है ।
प्रश्न - शेष नयों की व्याख्या करने से पहले उपर्युक्त तीन नयों को ही उदाहरणों द्वारा अच्छी तरह स्पष्ट कीजिए ।
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