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तत्त्वार्थसूत्र योग्य निमित्त मिलने पर उस निश्चित विषय का स्मरण हो आता है । इस निश्चय की सतत धारा, तज्जन्य संस्कार और संस्कारजन्य स्मरण-यह सब मतिव्यापार धारणा कहलाता है ।
प्रश्न-उक्त चारों भेदों का क्रम निर्हेतुक है या सहेतुक ?
उत्तर-सहेतुक है। सूत्र से स्पष्ट है कि सूत्र मे निर्दिष्ट क्रम से ही अवग्रहादि की उत्पत्ति होती है । १५ ।।
अवग्रह आदि के भेद बहुबहुविधक्षिप्रानिश्रितासन्दिग्धध्रुवाणां सेतराणाम् । १६ । सेतर ( प्रतिपक्षसहित ) बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिश्रित, असदिग्ध और ध्रुव रूप में अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणारूप मतिज्ञान होता है।
पाँच इन्द्रियाँ और मन इन छ: साधनो से होनेवाले मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा आदि रूप मे जो चौबीस भेद कहे गये है वे क्षयोपशम और विषय की विविधता से बारह-बारह प्रकार के होते है । जैसे
छः अवग्रह छः ईहा छः अवाय छः धारणा
बहुग्राही अल्पग्राही बहुविधग्राही एकविधग्राही क्षिप्रग्राही अक्षिप्रग्राही अनिश्रितग्राही निश्रितग्राही असंदिग्धग्राही संदिग्धग्राही ध्रुवग्राही अध्रुवग्राही
बहु अर्थात् अनेक और अल्प अर्थात् एक । जैसे, दो या दो से अधिक पुस्तकों को जाननेवाले अवग्रह, ईहा आदि चारो क्रमभावी मतिज्ञान बहुग्राही अवग्रह, बहुग्राहिणी ईहा, बहुग्राही अवाय और बहुग्राहिणी धारणा कहलाते है और एक
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