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सामान्य रूप से अवग्रह आदि का विषय
सामान्य रूप से अवग्रह आदि का विषय
अर्थस्य । १७। अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा-ये चारों मतिज्ञान अर्थ ( वस्तु) को ग्रहण करते हैं।
अर्थ अर्थात् वस्तु । द्रव्य-सामान्य और पर्याय-विशेष इन दोनों को वस्तु कहते है । इसलिए प्रश्न होता है कि क्या इन्द्रियजन्य और मनोजन्य अवग्रह, ईहा आदि ज्ञान द्रव्यरूप वस्तु को विषय करते है या पर्यायरूप वस्तु को ? ___ उत्तर-उक्त अवग्रह, ईहा आदि ज्ञान मुख्यतः पर्याय को ग्रहण करते है, सम्पूर्ण द्रव्य को नहीं । द्रव्य को वे पर्याय द्वारा ही जानते है क्योकि इन्द्रिय और मन का मुख्य विषय पर्याय ही है । पर्याय द्रव्य का एक अंश है । इसलिए अवग्रह, ईहा आदि द्वारा जब इन्द्रियाँ और मन अपने-अपने विषयभूत पर्याय को जानते है तब वे उस-उस पर्यायरूप से द्रव्य को ही अंशत. जानते है; क्योंकि द्रव्य को छोड़कर पर्याय नही रहता और द्रव्य भी पर्याय-रहित नही होता, जैसे नेत्र का विषय रूप, संस्थान (आकार ) आदि है जो पुद्गल द्रव्य के पर्याय विशेष है। 'नेत्र आम्रफल आदि को ग्रहण करता है' इसका अर्थ इतना ही है कि वह उसके रूप तथा आकार-विशेष को जानता है। रूप और आकार-विशेष आम से भिन्न नही है इसलिए स्थूल दृष्टि से यह कहा जाता है कि नेत्र से आम देखा गया, परन्तु यह स्मरण रखना चाहिए कि उसने सम्पूर्ण आम को ग्रहण नही किया क्योंकि आम में तो रूप और संस्थान के अतिरिक्त स्पर्श, रस, गन्ध आदि अनेक पर्याय है जिनको जानने मे नेत्र असमर्थ है। इसी तरह स्पर्शन, रसन और घ्राण इन्द्रियाँ जब गरम-गरम जलेबी आदि वस्तु को ग्रहण करती है तब वे क्रमश. उस वस्तु के उष्ण स्पर्श, मधुर रस और सुगन्धरूप पर्याय को ही जानती है । कोई भी इन्द्रिय वस्तु के सम्पूर्ण पर्यायो को ग्रहण नही कर सकती । कान भी भाषात्मक पुद्गल के ध्वनि-रूप पर्याय को ही ग्रहण करता है, अन्य पर्याय को नही। मन भी किसी विषय के अमुक अश का ही विचार करता है । वह एक साथ संपूर्ण अंशो का विचार करने में असमर्थ है। इससे यह सिद्ध है कि इन्द्रियजन्य और मनोजन्य अवग्रह, ईहा आदि चारो ज्ञान पर्याय को ही मुख्यतया विषय करते है और द्रव्य को वे पर्याय द्वारा ही जानते है।
प्रश्न-पूर्व सूत्र और इस सूत्र मे क्या सम्बन्ध है ? ___ उत्तर-यह सूत्र सामान्य का वर्णन करता है और पूर्व सूत्र विशेष का अर्थात् इस सुत्र में पर्याय या द्रव्यरूप वस्तु को अवग्रह आदि ज्ञान का विषय जो
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