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तत्वार्थ सूत्र
[ १.२०.
प्रश्न - अर्थावग्रह के बहु, अल्प आदि उक्त बारह भेदों के विषय में कहा गया कि वे भेद व्यावहारिक अर्थावग्रह के है, नैश्वयिक के नहीं । इस पर प्रश्न होता है कि यदि ऐसा ही मान लिया जाय तो फिर उक्त रीति से मतिज्ञान के ३३६ भेद कैसे होंगे ? क्योंकि अट्ठाईस प्रकार के मतिज्ञान के बारह - बारह भेदों के हिसाब से ३३६ भेद होते है और अट्ठाईस प्रकार में तो चार व्यञ्जनावग्रह भी आते है जो नैश्चयिक अर्थावग्रह के भी पूर्ववर्ती होने से अत्यन्त अव्यक्त है । इसलिए उन चारों के बारह-बारह यानी ४८ भेद अलग कर देने पड़ेंगे !
उत्तर - अर्थावग्रह में तो व्यावहारिक को लेकर उक्त बारह भेद स्पष्टतया घटित किये जा सकते हैं इसलिए वैसा उत्तर स्थूल दृष्टि से दिया गया है । वास्तव में नैचयिक अर्थावग्रह और उसके पूर्ववर्ती व्यञ्जनावग्रह के भी बारह-बारह भेद समझने चाहिए । कार्य-कारण की समानता के सिद्धान्त पर व्यावहारिक अर्थावग्रह का कारण नैश्चयिक अर्थावग्रह है और उसका कारण व्यञ्जनावग्रह है । अब यदि व्यावहारिक अर्थावग्रह मे स्पष्ट रूप से बहु, अल्प आदि विषयगत विशेषों का प्रतिभास होता है तो उसके साक्षात् कारणभूत नैश्चयिक अर्थावग्रह और व्यवहित कारण व्यञ्जनावग्रह में भी उक्त विशेषों का प्रतिभास मानना पड़ेगा, यद्यपि वह अस्फुट होने से दुर्ज्ञेय है । अस्फुट हो या स्फुट, यहाँ सिर्फ सम्भावना की अपेक्षा से उक्त बारह-बारह भेद गिनने चाहिए । १८-१९ । श्रुतज्ञान का स्वरूप और उसके भेद
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श्रुतं मतिपूर्वं यनेकद्वादशभेदम् । २० ।
श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है । वह दो प्रकार का, अनेक प्रकार का और बारह प्रकार का है ।
तिज्ञान कारण है और श्रुतज्ञान कार्य क्योकि मतिज्ञान से श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है । इसीलिए उसको मतिपूर्वक कहा गया है। किसी भी विषय का श्रुतज्ञान प्राप्त करने के लिए उसका मतिज्ञान पहले आवश्यक है । इसीलिए मतिज्ञान श्रुतज्ञान का पालन और पूरण करनेवाला कहलाता है । मतिज्ञान श्रुतज्ञान का कारण तो है, पर बहिरङ्ग कारण है, अन्तरङ्ग कारण तो श्रुतज्ञानावरण का क्षयोपशम है । क्योंकि किसी विषय का मतिज्ञान हो जाने पर भी यदि क्षयोपशम न हो तो उस विषय का श्रुतज्ञान नहीं हो सकता ।
प्रश्न - - मतिज्ञान की तरह श्रुतज्ञान की उत्पत्ति मे भी इन्द्रिय और मन की सहायता अपेक्षित है, फिर दोनों में अन्तर क्या है ? जब तक दोनों का भेद स्पष्ट न जाना जाय तब तक 'श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है' यह कथन विशेष अर्थ नहीं रखता । मतिज्ञान का कारण मतिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम और श्रुतज्ञान
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