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१. २१-२३. ] अवधिज्ञान के प्रकार और उनके स्वामी
२७ अवधिज्ञान के प्रकार और उनके स्वामी
द्विविधोऽवधिः। २१ । तत्र भवप्रत्ययो नारकदेवानाम् । २२ ।
यथोक्तनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् । २३ । अवधिज्ञान दो प्रकार का है। उन दो में से भवप्रत्यय नारक और देवों को होता है।
यथोक्तनिमित्त-क्षयोपशमजन्य अवधि छः प्रकार का है जो तिर्यञ्च तथा मनुष्यों को होता है ।
अवधिज्ञान के भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय ये दो भेद है । जो अवधिज्ञान जन्म लेते ही प्रकट होता है वह भवप्रत्यय है। जिसके आविर्भाव के लिए व्रत, नियम आदि अनुष्ठान अपेक्षित नही है उस जन्मसिद्ध अवधिज्ञान को भवप्रत्यय कहते है । जो अवधिज्ञान जन्मसिद्ध नही है किन्तु जन्म लेने के बाद व्रत, नियम आदि गुणों के अनुष्ठान से प्रकट किया जाता है वह गुणप्रत्यय अथवा क्षयोपशमजन्य है।
प्रश्न-क्या भवप्रत्यय अवधिज्ञान बिना क्षयोपशम के ही उत्पन्न होता है ? उत्तर-नहीं, उसके लिए भी क्षयोपशम अपेक्षित है।
प्रश्न-तब तो भवप्रत्यय भी क्षयोपशमजन्य ही हुआ। फिर भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय दोनों में क्या अन्तर है ?
उत्तर-कोई भी अवधिज्ञान योग्य श्रयोपशम के बिना नही हो सकता। अवधि-ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम तो अवधिज्ञानमात्र का साधारण कारण है। क्षयोपशम सबका समान कारण है, फिर भी किसी अवधिज्ञान को भवप्रत्यय और किसी को क्षयोपशमजन्य ( गुणप्रत्यय) क्षयोपशम के आविर्भाव के निमित्तभेद की अपेक्षा से कहा गया है। देहधारियों की कुछ जातियाँ ऐसी है जिनमे जन्म लेते ही योग्य क्षयोपशम और तद्द्वारा अवधिज्ञान की उत्पत्ति हो जाती है अर्थात् उन्हे अपने जीवन में अवधिज्ञान के योग्य क्षयोपशम के लिए तप आदि अनुष्ठान नही करना पडता । ऐसे सभी जीवों को न्यूनाधिक रूप में जन्मसिद्ध अवधिज्ञान अवश्य होता है और वह जीवनपर्यन्त रहता है । इसके विपरीत कुछ जातियाँ ऐसी भी है जिन्हे जन्म के साथ अवधिज्ञान प्राप्त होने का नियम नही है । इनको अवधिज्ञान के योग्य क्षयोपशम के लिए तप आदि का अनुष्ठान करना पडता है। ऐसे सभी जीवों मे अवधिज्ञान सम्भव नही होता, केवल उन्ही मे सम्भव होता है जिन्होंने उस ज्ञान के योग्य गुण पैदा किये हों । इसीलिए क्षयोपशमरूप अन्तरङ्ग कारण समान होने पर भी उसके लिए किसी जाति में केवल जन्म की और किसी जाति मे तप आदि गुणों की अपेक्षा
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