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१. १८-१९]
अवग्रह के अवान्तर भेद कौन नहीं जानता कि नेत्र दूर, दूरतरवर्ती वृक्ष व पर्वत आदि को ग्रहण कर लेता है और मन सुदूरवर्ती वस्तु का भी चिन्तन कर लेता है। इसीलिए नेत्र तथा मन अप्राप्यकारी माने गये है और उनसे होनेवाली ज्ञानधारा को पटुक्रमिक कहा गया है। कर्ण, जिह्वा, घ्राण और स्पर्शन ये चार इन्द्रियाँ मन्दक्रमिक ज्ञानधारा की कारण है क्योंकि ये चारों इन्द्रियाँ प्राप्यकारी ( ग्राह्य) विषयों को उनसे संयुक्त होकर ही ग्रहण करती है । जब तक शब्द कान में न पडे, शक्कर जीभ से न लगे, पुष्प का रजकण नाक में न घुसे और जल शरीर को न छुए तब तक न तो शब्द ही सुनाई देता है, न शक्कर का ही स्वाद आता है, न फूल की सुगन्ध ही आती है और न जल ही ठण्डा या गरम जान पड़ता है।
प्रश्न- मतिज्ञान के कुल कितने भेद है ? उत्तर-मतिज्ञान के कुल ३३६ भेद है। प्रश्न-किस प्रकार ।
उत्तर–पाँच इन्द्रियाँ और मन छहों के अर्थावग्रह आदि चार-चार के हिसाब से चौबीस भेद हुए तथा उनमें चार प्राप्यकारी इन्द्रियों के चार व्यञ्जनावग्रह जोडने से अट्ठाईस हुए । इन सबको बहु, अल्प, बहुविध, अल्पविध आदि बारह-बारह भेदों से गुणा करने पर ३३६ होते है । भेदों की यह गणना स्थूल दृष्टि से है। वास्तव में तो प्रकाश आदि की स्फुटता, अस्फुटता, विषयों की बिविधता और क्षयोपशम को विचित्रता के आधार पर तरतमभाववाले असंख्य होते है।
प्रश्न-पहले बहु, अल्प आदि जो बारह भेद कहे गये है वे विषयगत विशेषों पर ही लागू होते है, और अर्थावग्रह का विषय तो सामान्यमात्र है । इस तरह वे अर्थावग्रह में कैसे घटित हो सकते है ?
उत्तर–अर्थावग्रह दो प्रकार का माना गया है : व्यावहारिक और नैश्चयिक । बहु, अल्प आदि बारह भेद प्रायः व्यावहारिक अर्थावग्रह के ही है, नैश्चयिक के नही। नैश्चयिक अर्थावग्रह मे जाति-गुण-क्रिया से रहित सामान्यमात्र प्रतिभासित होता है इसलिए उसमे बहु, अल्प आदि विशेषों का ग्रहण सम्भव नही है।
प्रश्न-व्यावहारिक और नैश्चयिक में क्या अन्तर है ?
उत्तर-जो अर्थावग्रह पहले पहल सामान्यमात्र को ग्रहण करता है वह नैश्चयिक है और जिस-जिस विशेषग्राही अवायज्ञान के बाद अन्यान्य विशेषों की जिज्ञासा और अवाय होते रहते है वे सामान्य-विशेषग्राही अवायज्ञान व्यावहारिक अर्थावग्रह है । वही अवायज्ञान व्यावहारिक अर्थावग्रह नही है जिसके बाद अन्य विशेषों की जिज्ञासा न हो । अपने बाद नये-नये विशेषों की जिज्ञासा पैदा करने वाले अन्य सभी अवायज्ञान व्यावहारिक अर्थावग्रह हैं ।
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