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१. १५ ]
मतिज्ञान के भेद
मतिज्ञान के भेद
अवग्रहेहावायधारणाः । १५ । मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा—ये चार भेद हैं।
प्रत्येक इन्द्रियजन्य और मनोजन्य मतिज्ञान के चार-चार भेद है । अतएव पाँच इन्द्रियाँ और एक मन इन छहों के अवग्रह आदि चार-चार भेद गिनने से मतिज्ञान के चौबीस भेद होते है । उनके नाम इस प्रकार है
स्पर्शन
अवग्रह
ईहा
अवाय
धारणा
रसन
घ्राण चक्षु श्रोत्र
, ,, ,
, ,, ,
, ,, ,
, ,
मन
प्रवग्रह प्रादि उक्त चारों भेदों के लक्षण-१. नाम, जाति आदि की विशेष कल्पना से रहित सामान्य मात्र का ज्ञान अवग्रह है। जैसे, गाढ़ अन्धकार मे कुछ छू जाने पर यह ज्ञान होना कि यह कुछ है । इस ज्ञान में यह नहीं मालूम होता कि किस चीज का स्पर्श हुआ है, इसलिए वह अव्यक्त ज्ञान अवग्रह है। २. अवग्रह के द्वारा ग्रहण किये हुए सामान्य विषय को विशेष रूप से निश्चित करने के लिए जो विचारणा होती है वह ईहा है। जैसे, यह रस्सी का स्पर्श है या साँप का यह संशय होने पर ऐसी विचारणा होती है कि यह रस्सी का स्पर्श होना चाहिए, क्योंकि यदि साँप होता तो इतना सख्त आघात होने पर वह फुफकारे बिना न रहता। यही विचारणा सम्भावना या ईहा है । ३. ईहा के द्वारा ग्रहण किये हुए विशेष का कुछ अधिक अवधान ( एकाग्रतापूर्वक निश्चय ) अवाय है। जैसे, कुछ काल तक सोचने और जाँच करने पर निश्चय हो जाना कि यह साँप का स्पर्श नही, रस्सी का ही है, इसे अवाय कहते है । ४. अवायरूप निश्चय कुछ काल तक कायम रहता है, फिर मन के विषयान्तर मे चले जाने से वह निश्चय लुप्त तो हो जाता है पर ऐसा संस्कार छोड़ जाता है कि आगे कभी
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