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१. ५ ]
निक्षेपों का नामनिर्देश से हो सके कि मोक्ष-मार्गरूप से सम्यग्दर्शन आदि अर्थ और तत्त्वरूप से जीवाजीवादि अर्थ अमुक प्रकार का लेना चाहिए, दूसरे प्रकार का नहीं। वे चार निक्षेप ये है : १. जो अर्थ व्युत्पत्ति-सिद्ध नहीं है, मात्र माता, पिता या अन्य लोगों के संकेत से जाना जाता है वह नामनिक्षेप है; जैसे, एक ऐसा व्यक्ति जिसमे सेवक-योग्य कोई गुण नहीं है, पर किसी ने जिसका नाम सेवक रख दिया है। २. जो वस्तु असली वस्तु की प्रतिकृति, मूर्ति या चित्र हो अथवा जिसमे असली वस्तु का आरोप किया गया हो वह स्थापना-निक्षेप है; जैसे, किसी सेवक का चित्र या मूर्ति । ३. जो अर्थ भावनिक्षेप का पूर्वरूप या उत्तररूप हो अर्थात् उसकी पूर्व या उत्तर अवस्थारूप हो वह द्रव्यनिक्षेप है; जैसे, एक ऐसा व्यक्ति जो वर्तमान में सेवाकार्य नही करता, पर या तो वह सेवा कर चुका है या आगे करने वाला है । ४. जिस अर्थ में शब्द की व्युत्पत्ति या प्रवृत्ति-निमित्त ठीकठीक घटित हो वह भावनिक्षेप है; जैसे, एक ऐसा व्यक्ति जो सेवक योग्य कार्य करता है।
सम्यग्दर्शन आदि मोक्षमार्ग के और जीव-अजीवादि तत्त्वों के भी चार-चार निक्षेप हो सकते है । परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में वे भावरूप ही ग्राह्य है । ५ ।
१. संक्षेप में नाम दो तरह के होते हैं-यौगिक और रूढ । रसोइया, सुनार इत्यादि यौगिक शब्द हैं । गाय, घोडा इत्यादि रूढ शब्द हैं। रसोई बनानेवाला रसोइया
और सुवर्ण का काम करनेवाला सुनार । यहाँ रसोई और सुवर्ण का काम करने की क्रिया ही रसोइया और सुनार शब्दों की व्युत्पत्ति का निमित्त है। अर्थात् ये शब्द ऐसी क्रिया के आश्रय से ही बने है और इसीलिए वह क्रिया ऐसे शब्दों की व्युत्पत्ति का निमित्त कही जाती है। यदि यही बात संस्कृत शब्दों पर लागू करनी ही तो पाचक, कुम्भकार आदि शब्दो मे क्रमश. पाक-क्रिया और घट-निर्माण की क्रिया को व्युत्पत्तिनिमित्त समझना चाहिए। सारांश यह है कि यौगिक शब्दों मे व्युत्पत्ति का निमित्त ही उनकी प्रवृति का निमित्त बनता है। लेकिन रूढ शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर व्यवहृत नहीं होते, रूढि के अनुसार उनका अर्थ होता है। गाय (गो), घोड़ा ( अश्व ) आदि शब्दो की कोई खास व्युत्पत्ति नहीं होती, लेकिन यदि कोई किसी प्रकार कर ले तो भी अन्न मे उसका व्यवहार तो रूढि के अनुसार ही होता है, व्युत्पत्ति के अनुसार नहीं । अमुक-अमुक प्रकार की आकृति-जाति ही गाय, घोडा आदि रूढ शब्दो के व्यवहार का निभित है। अतः उस आकृति-जाति को वैसे शब्दो का व्युत्पत्ति-निमित नहीं लेकिन प्रवृत्ति निमित्त ही कहा जाता है ।।
जहाँ यौगिक शब्द (विशेषणरूप) हो वहाँ व्युत्पत्ति-निमित्तवाले अर्थ को भावनिक्षेप और जहाँ रूढ शब्द ( जाति-नाम) हो वहाँ प्रवृत्ति-निमित्तवाले अर्थ को भावनिक्षेप समझना चाहिए।
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