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सम्यग्ज्ञान के भेद
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उपराम, क्षयोपशम और क्षय से उत्पन्न है । इन भावो से सम्यक्त्व की शुद्धि का तारतम्य जाना जा सकता है । औपशमिक की अपेक्षा क्षायोपशमिक और क्षायोपशमिक की अपेक्षा क्षायिक भाव वाला सम्यक्त्व उत्तरोत्तर विशुद्ध, विशुद्धतर होता है । उक्त तीन भावों के सिवाय दो भाव और भी है - औदयिक तथा पारिणामिक । इन भावो मे सम्यक्त्व नही होता । अर्थात् दर्शनमोहनीय को उदयावस्था मे सम्यक्त्व का आविर्भाव नही हो सकता । इसी तरह सम्यक्त्व अनादिकाल से जीवत्व के समान अनावृत अवस्था मे न पाये जाने के कारण पारिणामिक अर्थात् स्वाभाविक भी नही है । १४. अल्पबहुत्व ( न्यूनाधिकता ) - पूर्वोक्त तीन प्रकार के सम्यक्त्व मे औपशमिक सम्यक्त्वं सबसे अल्प है, क्योंकि ऐसे सम्यक्त्व वाले जीव अन्य प्रकार के सम्यक्त्व वालों से हमेशा थोड़े ही होते है । औपशमिक सम्यक्त्व से क्षायोपशमिक सम्यक्त्व असंख्यातगुणा और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व से क्षायिक सम्यक्त्व अनन्तगुणा है । क्षायिक सम्यक्त्व के अनन्तगुणा होने का कारण यह है कि यह सम्यक्त्व समस्त मुक्त जीवों मे होता है और मुक्त जीव अनन्त हैं । ७-८ ।
सम्यग्ज्ञान के भेद
मतिश्रुताऽवधिमनः पर्यायकेवलानि ज्ञानम् । ९ ।
सम्यग्ज्ञान का लक्षण अपने
मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और केवल —ये पाँच ज्ञान हैं । जैसे सूत्र में सम्यग्दर्शन का लक्षण बतलाया गया है वैसे नही । क्योकि सम्यग्दर्शन का लक्षण जान लेने से सम्यग्ज्ञान का आप ज्ञात किया जा सकता है । जीव कभी सम्यग्दर्शन- रहित तो होता है, पर ज्ञानरहित नही । किसी-न-किसी प्रकार का ज्ञान जीव मे अवश्य रहता है । वही ज्ञान सम्यक्त्व का आविर्भाव होते ही सम्यग्ज्ञान कहलाता है । सम्यग्ज्ञान और असम्यग्ज्ञान मे यही अन्तर है कि पहला सम्यक्त्व - सहचरित है और दूसरा सम्यक्त्वरहित अर्थात् मिथ्यात्व - सहचरित है ।
प्रश्न – सम्यक्त्व का ऐसा क्या प्रभाव है कि उसके अभाव में तो ज्ञान कितना ही अधिक और अभ्रान्त क्यों न हो, असभ्यग्ज्ञान या मिथ्याज्ञान कहलाता
१. यहाँ क्षायोपशमिक को औपशमिक की अपेक्षा जो शुद्ध कहा गया है वह परिणाम की अपेक्षा से नहीं, स्थिति को अपेक्षा से है। परिणाम की अपेक्षा से तो औपशमिक ही ज्यादा शुद्ध है । क्योकि क्षायोपशमिक सम्यक्त्व मे तो मिथ्यात्व का प्रदेशोदय हो सकता है किन्तु औपशमिक सम्यक्त्व के समय किसी तरह के मिथ्यात्वमोहनीय का उदय सम्भव नहीं । तथापि औपशमिक की अपेक्षा क्षायोपशमिक की स्थिति बहुत लंबी होती है। इसी अपेक्षा से इसे बिशुद्ध भी कह सकते है ।
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