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परिशिष्ट मैने पं० नाथूरामजी प्रेमी तथा पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार से उमास्वाति तथा तत्त्वार्थ से सम्बन्धित बातों के विषय में कुछ प्रश्न पूछे थे । उनकी ओर से प्राप्त उत्तर का मुख्य अश उन्हीं के शब्दों में अपने प्रश्नों के साथ नीचे दिया जाता है। वर्तमान युग के दिगम्बर विद्वानी में, ऐतिहासिक क्षेत्र में, इन दोनों की योग्यता उच्च कोटि की रही है। अतः पाठकों के लिए उनके विचार उपयोगी होने से उन्हें परिशिष्ट के रूप में यहां देता हूँ। पं० जुगलकिशोरजी के उत्तर के जिस अंश पर मुझे कुछ कहना है वह उनके पत्र के बाद 'मेरी विचारणा' शीर्षक में कह दिया गया है (आगे पृष्ठ ७६)।
( क ) प्रश्न १. उमास्वाति कुन्दकुन्द के शिष्य या वंशज है, इस भाव का सबसे पुराना उल्लेख किस ग्रथ, पट्टावली या शिलालेख में आपके देखने में अब तक आया है ? अथवा यों कहिए कि दसवीं सदी के पूर्ववर्ती किस ग्रन्थ, पट्टावली आदि में उमास्वाति के कुन्दकुन्द के शिष्य या वंशज होने की बात मिलती है ?
२. आपके विचार मे पूज्यपाद का समय क्या है ? तत्त्वार्थ का श्वेताम्बर-भाष्य आपके विचार में स्वोपज्ञ है या नहीं? यदि स्वोपज्ञ नही है तो उस पक्ष में महत्त्वपूर्ण दलीलें क्या है ?
३. दिगम्बर परम्परा में कोई 'उच्च नागर' नामक शाखा कभी हुई है और वाचकवंश या वाचकपद धारी मुनियों का कोई गण प्राचीन काल में कभी हुआ है ? यदि हुआ है तो उसका वर्णन या उल्लेख कहाँ पर है ?
४. मुझे संदेह है कि तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता उमास्वाति कुन्दकुन्द के शिष्य थे, क्योकि इसका कोई भी प्राचीन प्रमाण अभी तक मुझे नही मिला। जो मिले वे सब बारहवीं सदी के बाद के हैं। इसलिए सरसरी तौर पर जो बात ध्यान में आए सो लिखिएगा।
५. प्रसिद्ध तत्त्वार्थशास्त्र की रचना कुन्दकुन्द के शिष्य उमास्वाति ने को है, इस मान्यता के लिए दसवी सदी से प्राचीन क्या-क्या प्रमाण या
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