________________
गया। सूत्र ४:४९-५१ और ५३ छोटे है जिन्हे निकाल देने पर सदर्भ में कोई कमी नही आती। सूत्र ५:४२-४४ में परिणाम की व्याख्या दोषपूर्ण है, अतः इनका विलोपन ठोक ही है जिसका विवेचन पं० सुखलालजी ने कर ही दिया है। सूत्र ९.३८ के विलोपन के सबध में तत्त्वार्थसूत्र के दिगम्बर टीकाकारो का अपना मत है। इस प्रकार श्वेताम्बर पाठ को दिगम्बर पाठ में साररूप से सुसमाहित किया गया है। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि श्वेताम्बर पाठ मूल है और दिगम्बर पाठ में उसका परिष्कार किया गया है, क्योंकि बाद की आवृत्ति पूर्व आवृत्ति को परिष्कृत करने के बजाय बिगाड़ भी सकती है। २. श्वेताम्बर पाठ में सूत्रों का विलोपन १. ४ : (४२) लौकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम्
६: (२१) सम्यक्त्वं च २. २: (४८) तैजसमपि [ ४९ भाष्य-तैजसमपि शरीरं लब्धि
प्रत्ययं भवति] २: (५२) शेषास्त्रिवेदाः[५१ भाष्य-परिशेष्याच्च गम्यन्ते जराय्वण्ड-पोतजास्त्रिविधा भवन्ति-स्त्रियः पुमांसो
नपंसकानीति] ७: (४-८) [ भावनाओ का वर्णन सूत्र ३ के भाष्य मे है,
यद्यपि दोनो पाठों मे थोड़ी भिन्नता है। ] ८: (२६) अतोऽन्यत्पापम् [ २६ भाष्य-अतोऽन्यत्पापम् ] १० : (७) आविद्ध-कुलाल - चक्रवद्-व्यपगत - लेपालाबुवद् -
एरण्ड-बीजवद्-अग्नि-शिखावच्च [ १० : ७ उपसहारकारिका १०-१२ और १४ मे नहीं अपितु ६ भाष्य में आत्मा के ऊर्ध्वगमन के दूसरे एवं चौथे
कारण की अभिव्यक्ति थोड़ी उलझनपूर्ण है।1 १० : (८) धर्मास्तिकायाभावात् [६ भाष्य और उपसंहार
कारिका २२-धर्मास्तिकायाभावात् ] ३. ३: (१२-३२) [ जम्बूद्वीप का वर्णन । दिगम्बर सूत्र ( २४ )
का भरतः षड्विंशति-पञ्च-योजन-शत-विस्तारः षड्-चैकोन-विंशति-भागा योजनस्य और ( २५) का तद्-द्विगुण-द्विगुण-विस्तारा वर्षधर-वर्षा विदे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org