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हान्ताः ११ भाष्य में इस प्रकार हैं-तत्र पंच योजनशतानि षड्विंशानि षट्चैकोन-विंशति-भागा भरतविष्कम्भः स द्विििहमवद्-धैमवतादीनामाविदेहेभ्यः । सूत्र (२७) का भरतैरावतयोर्वद्धिहासौ षट्-समयाभ्यामुत्सपिण्यवसर्पिणीभ्याम् ४ : १५ भाष्य में इस प्रकार है-ता अनुलोम-प्रतिलोमा अवसर्पिण्युत्सपिण्यो भरतैरावतेष्वनाद्यनन्तं परि
वर्तन्तेऽहो-रात्रवत् ।] ४. ५: (२९) सद्-द्रव्य-लक्षणम्
प्रथम वर्ग के सत्र छोटे हैं, इसलिए उनके विलोपन से संदर्भ में कमी नहीं आती। द्वितीय वर्ग के सभी दिगम्बर सूत्र भाष्य में उपलब्ध हैं, यहाँ तक कि कुछ तो शब्दशः हैं। भावनाओं के वर्णन से पूर्व सूत्र ७:३ (३) में इस प्रकार उल्लेख है-तत्स्थै र्याथं भावनाः पञ्च पञ्च । पदार्थो (भेदों ) के उपभेद गिनाते समय सूत्रकार यथाक्रमम् शब्द का प्रयोग करते हैं जिसका अर्थ होता है 'सत्रोक्त क्रम के अनुसार आगे का विवेचन करना।' सूत्र ७ : ३ ( ३ ) में यथाक्रमम् शब्द नहीं है, अतः भावनाओं का आगे विवेचन अभिप्रेत नही है। इससे यह प्रतीत होता है कि दिगम्बर सूत्र ७ : (३) मूल नहीं है। इसी प्रकार सूत्र ३ : (२) है जिसमें परिगणित नरकों का आगे विवेचन नही है ।
तृतीय वर्ग के दिगम्बर सूत्र ३ : (१२-३२) अर्थात् तीसरे अध्याय के ३९ सूत्रों में से २१ श्वेताम्बर आवृत्ति में अनुपलब्ध हैं। इनमें से तीन सत्र अर्थात् । २४,२५, २७) ३ : ११ और ४ : १५ के भाष्य में उपलब्ध है, यद्यपि उनमे शब्दशः साम्य नही है। यहाँ पर विलुप्त सत्रो की सख्या बहुत अधिक है, अतः श्वेताम्बर आवृत्ति में जम्बूद्वीप का वर्णन ऊर्ध्वलोक की तुलना में बहुत सक्षिप्त है। इन अतिरिक्त सत्रों मे निम्नोक्त बातें समाविष्ट है-१. जम्बूद्वीप का वर्णन जैसे पर्वत, ह्रद, सरित् और क्षेत्र-विस्तार (१२-२६ ); २. विभिन्न क्षेत्रों में उत्सर्पिणी और अवपिणी के आरों में वृद्धि और ह्रास तथा मनुष्यों की आयु (२७३१); ३. भरतक्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप का एक सौ नब्बेवॉ भाग (३२)। इनमें से प्रथम वर्ग के सूत्रो से जम्बूद्वीप की भौगोलिक रचना के संबंध में निश्चित जानकारी प्राप्त होती है जिसका श्वेताम्बर आवृत्ति में क्षेत्रों और पर्वतों द्वारा केवल निर्देश किया गया है। द्वितीय एवं
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