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३. सूत्रगत मतभेद निम्नोक्त आठ विषय और दो प्रकरण मुख्य मतभेद के विषय है, जिनका बाद में विस्तारपूर्वक विवेचन किया जाएगा। इनमें दोनो परम्पराओं की सैद्धान्तिक विषमताओं तथा तत्त्वार्थसूत्र के दोनों संस्करणों में उपलब्ध विभिन्न मतों का समावेश किया गया है। हम सर्वप्रथम दोनों संस्करणों में प्राप्त मतभेद के आठ विषयो की चर्चा करेंगे। १. १ : ३४-३५ नय पाँच प्रकार के हैं : नैगम, संग्रह, व्यवहार,
ऋजुसूत्र और शब्द ।।
-आवस्सय निज्जुत्ति १४४ से यह समर्थित है। (३३) समभिरूढ और एवंभूत के समाविष्ट करने पर
इनकी संख्या सात हो जाती है।
-अनुओगदार ९५३; आवस्सय निज्जुत्ति ७५४ सिद्धसेन दिवाकर ने छः नय भी माने हैं परन्तु दोनों परंपराओं के अधिकांश विद्वान् सात नय ही मानते है । अतः इस प्रकार की भिन्नता को, जिसका विकास विभिन्न स्तरों पर हुआ होगा, वस्तुतः मतभेद नहीं कहा जा सकता। २. २ : १३-१४ स्थावर तीन प्रकार के हैं : पृथ्वी, अप् और
वनस्पति । तेजस् और वायु त्रस हैं । -ठाण ३. ३. २१५; जीवाजीवाभिगम १. २२
आदि; उत्तरज्झयण ३६.६०-७० आदि । (१३) स्थावर पाँच प्रकार के है : पृथ्वी से वनस्पति
पर्यन्त ।
-ठाण ५. १. ४८८; प्रशमरति १९२ ३. २:३१ अन्तराल-गति में जीव तीन समय तक अना
हारक रहता है।
-भगवई ७. १. २५९; सूयगड निज्जुत्ति १७४ (३०) दो समय तक ही रहता है।
-पण्णवणा ११७५ अ ( दीक्षित, जैन ऑण्टोलॉजी, पृ० ८७)
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