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- १२२ - परा पल्योपमम॥४७॥ ज्योतिष्काणामधिकम् ॥४८॥ ग्रहाणामेकम् ॥४९॥ नक्षत्राणामर्धम् ॥५०॥ तारकाणां चतुर्भागः॥५१॥ जघन्या त्वष्टभागः ॥५२॥ चतर्भागः शेषाणाम् ॥५३॥
१. परा पल्योपममधिकम्-स० रा० श्लो० । २ ज्योतिष्कारणां च -स० रा० श्लो० । ३. यह और ५०, ५१ सूत्र स० रा० श्लो० में नहीं है । ४. तदष्टभागोऽपरा-स० रा० श्लो० । ज्योतिष्कों की स्थिति विषयक जो
सूत्र दिगम्बर पाठ में नही है उन सूत्रों के विषय की पूर्ति राजवा
तिक कार ने इसी सूत्र के वार्तिकों में की है। ५. स० रा० श्लो० मे नहीं है। स० और रा० मे एक और अंतिम सूत्र
लौकान्तिकानामष्टो सागरोपमारिण सर्वेषाम-४२ है, जो श्लो० मे नही है।
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