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उपर्युक्त पद्धति के अनुसार शिक्षण देने में निःसंदेह शिक्षक पर भार बढता है, पर उस भार को उत्साह और बुद्धिपूर्वक उठाए बिना शिक्षक का स्थान उच्च नहीं बन सकता और विद्यार्थी-वर्ग भी विचारदरिद्र ही रह जाता है। इसलिए शिक्षक को अधिक से अधिक तैयारी करनी चाहिए और उसकी सफलता के लिए विद्यार्थियों का मानस तैयार करना चाहिए । ज्ञान प्राप्त करने की दृष्टि से तो ऐसा करना अनिवाय है ही, पर वर्तमान ज्ञान-प्रवाह को देखते हुए सबके साथ समान रूप से बैठने की व्यावहारिक दृष्टि से भी यह अनिवार्य है।
-सुखलाल
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