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- ८९ - २ : ३८ तेषां परंपरं सूक्ष्मम्
(३७) परंपरं सूक्ष्मम् ३: १० तत्र भरत ।
(१०) भरत ... ६:२२ विपरीतं शुभस्य
(२३) तद्-विपरीतं शुभस्य ७:६ मैत्री-प्रमोद कारुण्य-माध्यस्थानि सत्त्व-गुण ...
(११) " " " च सत्त्व-गुण ... ८: ७
मत्यादीनाम (६) मति-श्रतावधि-मनःपर्यय-केवलानाम ८:१४ दानादीनाम [भाष्य-अन्तरायः पञ्चविधः/
तद्यथा-दानस्यान्तरायः,लाभस्यान्तरायः ....] (१३) दान-लाभ-भोगोपभोग-वीर्याणाम् ९ : १८ "यथाख्यातानि चारित्रम् ।
(१८) यथाख्यातमिति चारित्रम् यहाँ श्वेताम्बर पाठ में भाष्य के व्याख्यात्मक शब्द जोड़ देने से, या अनावश्यक शब्द निकाल देने से, या कम-से-कम शब्द बढा देने से बननेवाले दिगम्बर सूत्रों द्वारा अधिक स्पष्ट अर्थ प्रकट होता है। सत्र ८ : ७ और १४ में प्रयुक्त 'आदि' शब्द के लिए पिछले सूत्र १ : ९ और २ : ४ देखने चाहिए। सर्वार्थसिद्धि के उल्लेखानुसार सूत्र ९ : (१८) में प्रयुक्त 'इति' शब्द के समाप्तिसूचक होने से सूत्र ९ : २ (२) के व्याख्यान की समाप्ति का संकेत मिल जाता है जिससे स्पष्टीकरण मे निश्चित रूप से सुविधा होती है ।
____०, (८), [ ] ४. ३: २ तासु नरकाः [भाष्य-रत्नप्रभायां नरकवासानां त्रिंशच्छतसहस्राणि/शेषासु पञ्चविंशतिः ......नरक
शतसहस्रम्-इत्याषष्ठयाः ] (२) तासु त्रिंशत्-पंचविंशति यथाक्रमम् ७ : २७ ... पभोगाधिकत्वानि ।
(३२) पभोग-परिभोगानर्थक्यानि ८: ८ "स्त्यानगृद्धि वेदनीयानि च
(७) ""स्त्यानगृद्धयश्च
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