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ये सूत्र विभिन्न प्रकार के है । इनके पाठभेद का मूल्यांकन करना जरा कठिन है | सूत्र ८ : ८ में प्रत्येक प्रकार की निद्रा के साथ ' वेदनीय' शब्द जोड़ देने से उसकी अनुभूति का निश्चित भाव प्रकट होता है । वैसे इस शब्द को सूत्र से निकाल देने पर भी उसके भाव में कमी नहीं आती है ।
५ : २
४ दो सूत्रों की एक सूत्र में अभिव्यक्ति
१. दिगम्बर पाठ के दो सूत्रो का श्वेताम्बर पाठ के एक सूत्र में
समावेश
(२-३)
६ : १८
योग
द्रव्याणि जीवाश्च द्रव्याणि / जीवाश्च
अल्पारम्भ परिग्रहत्वं स्वभाव-म.
देवार्जवं च मानुषस्य (१७-१८) अल्पारम्भ - परिग्रहत्वं मानुषस्य / स्वभाव- मार्दवं च यहाँ सूत्र ५:२ का सूत्र ( २ ) और ( ३ ) में विभाजन उचित मालूम पड़ता है | सूत्र ६:१८ में 'आर्जव' शब्द का रहना ठीक ही है, क्योकि अल्पारम्भ आदि एव स्वभाव- मार्दव आदि की अवधारणा मे बहुत अन्तर नही है । ·, ( १ ), [ १ ] २. श्वेताम्बर पाठ के दो सूत्रों का दिगम्बर पाठ के एक सूत्र मे समावेश
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०, ( ० ), [ ३ ]
१९, (१०), [ ६ ]........३५
१ : २१-२२ द्वि-विधोऽवधिः / भव-प्रत्ययो नारक- देवानाम् (२१) भव - प्रत्ययोऽवधिर्देव-नारकाणाम्
५ : ७८ असंख्येयाः प्रदेशा धर्माधर्मयो / जीवस्य
(८) असंख्येयाः प्रदेशा धर्माधर्मैकजीवानाम्
१० : २-३
६ : ३-४ शुभः पुण्यस्य / अशुभः पापस्य (३) शुभः पुण्यस्याशुभः पापस्य
८ : २-३ सकषायत्वाज्जीवः पुद्गलान् आदत्ते / स बन्धः (२) सकषायत्वाज्जीवः -ध्यानम् / आ-मुहूर्तात् ध्यानान्तर्मुहूर्तात्
पुद्गलान् आदत्ते स बन्धः
९ : २७-२८ (२७)
...
बन्ध- हेत्वभाव-निर्जराभ्याम् / कृत्स्न कर्म-क्षयो मोक्षः ( २ ) बन्ध हेत्वभाव-निर्जराभ्यां कृत्स्न- कर्म - विप्रमोक्षो मोक्षः
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