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अध्ययन विषयक सूचनाएँ जैन दर्शन का प्रामाणिक अध्ययन करने के इच्छुक जैन-जैनेतर विद्यार्थी एवं शिक्षक यह पूछते है कि ऐसी एक पुस्तक कौन-सी है जिसका संक्षिप्त तथा विस्तृत अध्ययन किया जा सके और उससे जैन दर्शन मे सन्निहित मुद्दों के प्रत्येक विषय का ज्ञान हो सके। इस प्रश्न के उत्तर में 'तत्त्वार्थ' के सिवाय अन्य किसी पुस्तक का निर्देश नहीं किया जा सकता। तत्त्वार्थ की इतनी योग्यता होने से आजकल जहाँ-तहाँ जैन दर्शन के पाठ्यक्रम में इसका सर्वप्रथम स्थान रहता है। फिर भी उसकी अध्ययन-परिपाटी की जो रूपरेखा है वह विशेष फलप्रद प्रतीत नहीं होती। इसलिए उसकी अध्ययन-पद्धति के विषय मे यहाँ पर कुछ सूचनाएँ देना अप्रासंगिक न होगा।
सामान्यतः तत्त्वार्थ के श्वेतांबर पाठक उसकी दिगम्बर टीकाओ को नहीं देखते और दिगम्बर पाठक श्वेताम्बर टीकाओं को नहीं देखते । इसका कारण सकूचित दृष्टि, साम्प्रदायिक अभिनिवेश, जानकारी का अभाव अथवा चाहे जो हो पर अगर यह धारणा सही हो तो इसके कारण पाठक का ज्ञान कितना सकूचित रहता है, उसकी जिज्ञासा कितनी अपरितृप्त रहती है और उसको तुलना तथा परोक्षण करने की शक्ति कितनी कुंठित रहती है तथा उसके परिणामस्वरूप तत्त्वार्थ के पाठक का प्रामाण्य कितना अल्प निर्मित होता है, इसे समझने के लिए वर्तमान को सभी जैन संस्थाओ के विद्यार्थियो से अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं । ज्ञान के मार्ग में, जिज्ञासा के क्षेत्र मे और सत्यान्वेषण में चौकाबदी को अर्थात् दृष्टि-संकोच या सम्प्रदाय-मोह को स्थान हो तो उससे मूल वस्तु ही सिद्ध नहीं होती। जो तुलना के विचार मात्र से ही डर जाते है वे या तो अपने पक्ष की प्रामाणिकता तथा सबलता के विषय में शंकित होते हैं या दूसरे के पक्ष के सामने खड़े होने की शक्ति कम रखते हैं अथवा असत्य को छोड़कर सत्य को स्वीकार - रने में हिचकिचाते हैं तथा अपनी सत्य बात को भी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त बुद्धिबल और धैर्य नहीं रखते। ज्ञान का अर्थ यही है कि संकुचितता, बधन और
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