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नहीं है फिर भी ऐसा जान पड़ता है कि वह किसी प्राचीन रचना का रूपान्तर है और इस दृष्टि से उसका कथन प्रमाणकोटि का है। 'दर्शनसार' ६६० संवत् का बनाया हुआ है, उसमें पद्मनन्दी या कुन्दकुन्द का उल्लेख है परन्तु उमास्वाति का नही । जिनसेन के समय राजवार्तिक और श्लोकवार्तिक बन चुके थे परन्तु उन्होने भी बीसों आचार्यों और ग्रन्थकर्ताओं की प्रशंसा के प्रसंग में उमास्वाति का उल्लेख नहीं किया, क्योंकि वे उन्हें अपनी परम्परा का नहीं समझते थे । एक बात और है । आदिपुराण, हरिवंशपुराण आदि के कर्ताओ ने कुन्दकुन्द का भी उल्लेख नही किया है, यह एक विचारणीय बात है ।
मेरी समझ में कुन्दकुन्द एक खास आम्नाय या सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे । उन्होंने जैनधर्म को वेदान्त के साँचे में ढाला था। जान पड़ता है कि जिनसेन आदि के समय तक उ का मत सर्वमान्य नहीं हुआ और इसीलिए उनके प्रति उन्हें कोई आदरभाव नहीं था।
'तत्त्वार्थशास्त्रकर्तारं गृध्रपिच्छोपलक्षितम्' यह श्लोक मालूम नहीं कहाँ का है और कितना पुराना है। तत्त्वार्थसूत्र की मूल प्रतियों में यह पाया जाता है । कहीं-कही कुन्दकुन्द को भी गृध्रपिच्छ लिखा है । गृध्रपिच्छ नाम के एक और भी आचार्य का उल्लेख है। जैनहितैषी, भाग १०, पृष्ठ ३६९ और भाग १५, अंक ६ के कुन्दकुन्द सम्बन्धी लेख पढवा कर देख लीजिएगा।
षट्पाहुड की भूमिका भी पढ़वा लीजिएगा ।
श्रतसागर ने आशाधर के महाभिषेक की टीका संवत् १५८२ में समाप्त की है। अतएव ये विक्रम की सालहवी शताब्दी के है । तत्त्वार्थ की वत्ति के और पटनाहड की तथा यशस्तिलक की टीका के कर्ता भी यही है । दूसरे श्रुतसागर के विषय मे मुझे मालूम नही ।" ।
(ग) जुगलकिशोरजी मुख्तार का पत्र "आपके प्रश्नो का मै सरसरी तौर से कुछ उत्तर दिये देता हूँ :
१. अभी तक जो दिगम्बर पट्टालियां ग्रन्थादिकों में दी हुई गुर्वावलियों से भिन्न उपलब्ध हुई हैं वे प्राय. विक्रम को १२वीं शताब्दी के बाद की बनी हुई जान पड़ती हैं, ऐसा कहना ठीक होगा। उनमें सबसे पुरानी कौन-सी है और वह कब की बनी हुई है, इस विषय में मै इस समय कुछ नहीं कह सकता। अधिकांश पट्टावलियों पर निर्माण के सम
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