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१३. अहिंसा आदि महाव्रत ( ७.१ )
१४. हिंसा आदि वृत्तियों में ऐहिक,
पारलौकिक दोषों का दर्शन करके उन्हें रोकना ( ७.४ ) १५. हिंसा आदि दोषो में दू खपने की ही भावना करके उन्हें त्यागना ( ७.५ )
१६. मैत्री आदि चार भावनाएँ ( ७.६ )
१७. पृथक्त्ववित्तर्कसविचार और एकत्ववितर्कनिर्विचार आदि चार शुक्ल ध्यान ( ९.४१४६ )
१८. निर्जरा और मोक्ष ( ९.३ और १०. ३ )
१९. ज्ञानसहित चारित्र ही निर्जरा और मोक्ष का हेतु ( १ . १ ) २०. जातिस्मरण, अवधिज्ञानादि दिव्यज्ञान और विद्यादि लब्धियाँ (१.१२ और १०.७ का भाष्य )
चारण
२१. केवलज्ञान ( १०. १ )
५६.
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१३. अहिंसा आदि सार्वभौम यम ( २३० )
१४. प्रतिपक्ष भावना द्वारा हिंसा आदि वितर्को को रोकना ( २. : ३-३४ )
१५. विवेकी की दृष्टि में सम्पूर्ण कर्माशय दुःखरूप ( २.१५ )
१६. मैत्री आदि चार भावनाएँ ( १.३३ )
१७. सवितर्क, निर्वितर्क, सविचार और निर्विचाररूप चार संप्रज्ञात समाधियाँ (१.१६ ओर ४१, ४४ )
१८. आशिकान - बन्धोपरम और सर्वथाहान' ( २. २५ ) १९. सांगयोगसहित विवेकख्याति ही हान का उपाय ( २.२६ ) २०. संयमजनित वैसी ही विभूतियाँ ( २. २९ और ३. १६ से आगे )
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२१. विवेकजन्य तारक ज्ञान (३.५४)
इनके अतिरिक्त कितनी ही बातें ऐसी भी हैं जिनमें से एक बात
१. ये चार भावनाएँ बौद्ध परम्परा मे 'ब्रह्मविहार' कहलाती है और उन पर बहुत जोर दिया गया है ।
२. ध्यान के ये चार भेद बौद्धदर्शन मे प्रसिद्ध है ।
३. इसे बौद्धदर्शन मे 'निर्वाण' कहते हैं, जो तीसरा आर्यसत्य है ।
४. बौद्धदर्शन में इनके स्थान पर पाँच अभिशाएँ है । देखें - धर्मसंग्रह, पृ० ४ और अभिधम्मत्थसंग्रहो, परिच्छेद ९ पैरा २४ ।
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