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पुष्टि द्वारा अन्त में मोक्ष प्राप्त करना ही है। बौद्ध-दर्शन के क्षणिकवाद का अथवा चार आर्यसत्यों में समाविष्ट आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक विषय के निरूपण का उद्देश्य भी मोक्ष के अतिरिक और कुछ नहीं है। जैनदर्शन के शास्त्र भी इसी मार्ग का अवलम्बन लेकर लिखे गए हैं। वाचक उमास्वाति ने भी अन्तिम उद्देश्य मोक्ष रखकर ही उसकी प्राप्ति का उपाय सिद्ध करने के लिए निश्चित की हुई सभी वस्तुओं का वर्णन अपने तत्त्वार्थ में किया है।
(ग) रचना-शैली पहले से ही जैन आगमों की रचना-शैली बौद्ध पिटकों जैसी लम्बे और वर्णनात्मक सूत्रों के रूप में प्राकृत भाषा में चली आती थी। दूसरी ओर ब्राह्मण विद्वानों द्वारा संस्कृत भाषा की संक्षिप्त सूत्रों की रचना-शैली धीरे-धीरे बहुत प्रतिष्ठित हो गई थी। इस संस्कृत सूत्र-शैली ने वाचक उमास्वाति को आकर्षित किया और उसी में उन्हे लिखने की प्रेरणा हई । जहाँ तक हमारा खयाल है, जैन संप्रदाय में संस्कृत भाषा में छोटे-छोटे सूत्रों के रचयिता सर्वप्रथम उमास्वाति ही हैं। उनके बाद हो यह सूत्रशैली जैन परम्परा में प्रतिष्ठित हुई और व्याकरण, अलकार, आचार, नीति, न्याय आदि अनेक विषयों पर श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों विद्वानों ने इस शैली में संस्कृत भाषाबद्ध ग्रन्थों की रचना की।
उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र कणाद के वैशेषिकसूत्रों की भाँति दस
१. वाचक उमास्वाति को तत्त्वार्थ-रचना की प्रेरणा 'उत्तराध्ययन' के २८वें अध्ययन से मिली है, ऐसा ज्ञात होता है । इस अध्ययन का नाम 'मोक्षमार्ग' है । इस अध्ययन मे मोक्ष के मार्गों को सूचित कर उनके विषय के रूप मे जैन तत्त्वज्ञान का अत्यन्त सक्षेप मे निरूपण है। इसी वस्तु का उमास्वाति ने विस्तार करके उसमें समग्र आगम के तत्त्वों को गंथ दिया है। उन्होने अपने सूत्र-ग्रंथ का प्रारम्भ भी मोक्षमार्ग प्रतिपादक सूत्र से ही किया है। दिगम्बर परम्परा मे तो तत्त्वार्थसूत्र ‘मोक्षशास्त्र' के नाम से ही प्रसिद्ध है। बौद्ध-परम्परा मे विशुद्धिमार्ग नामक अति महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रसिद्ध है। इसकी रचना पाँचवी सदी के आसपास पालि भाषा मे बुद्धघोष ने की है। इसमे समग्र पालि-पिटकों का सार है । इसका पूर्ववर्ती विमुक्तिमार्ग नामक ग्रन्थ भी बौद्ध-परम्परा मे था जिसका अनुवाद चीनी भाषा मे मिलता है। विशुद्धिमार्ग और विमुक्तिमार्ग दोनो शब्दों का अर्थ मोक्षमार्ग ही है ।
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