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(ढ) विबुधसेन, योगीन्द्रदेव, लक्ष्मीदेव, योगदेव और अभयनन्दिसूरि आदि
अनेक दिगम्बर विद्वानों ने तत्त्वार्थ पर साधारण संस्कृत व्याख्याएँ लिखी हैं । उनका मुझे विशेष परिचय नही मिला । इतने संस्कृत व्याख्याकारों के अतिरिक्त तत्त्वार्थ की हिन्दी आदि भाषाओं में टीका लिखनेवाले अनेक दिगम्बर विद्वान् हो गए हैं, जिनमें से कुछ ने तो कन्नड़ भाषा में टीकाएँ लिखी हैं और शेष ने हिन्दी भाषा में टीकाएँ लिखी हैं ।
३. तत्त्वार्थसूत्र
तत्त्वार्थशास्त्र का बाह्य तथा आभ्यन्तर विशेष परिचय प्राप्त करने के लिए मूल ग्रन्थ के आधार पर नीचे लिखी चार बातों पर विचार किया जाता है- ( क ) प्रेरक सामग्री, ( ख ) रचना का उद्देश्य, ( ग ) रचनाशैली और (घ ) विषयवर्णन |
( क ) प्रेरक सामग्री
ग्रन्थकार को जिस सामग्री ने 'तत्त्वार्थ सूत्र' लिखने की प्रेरणा दी वह मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित की जाती है ।
१. आगमज्ञान का उत्तराधिकार - वैदिक दर्शनों में जैसे वेद वैसे ही जैनदर्शन में आगम-ग्रन्थ मुख्य प्रमाण माने जाते हैं, दूसरे ग्रन्थों का प्रामाण्य आगम का अनुसरण करने में ही है । इस आगमज्ञान का पूर्व परम्परा से चला आया उत्तराधिकार वाचक उमास्वाति को समुचित रूप में मिला था, इसलिए सम्पूर्ण आगमिक विषयों का ज्ञान उन्हें स्पष्ट तथा व्यवस्थित रूप में था ।
२. संस्कृत भाषा - काशी, मगध, बिहार आदि प्रदेशों में रहने तथा विचरने के कारण और कदाचित् ब्राह्मणजाति के होने के कारण वाचक उमास्वाति ने अपने समय की प्रधान भाषा संस्कृत का गहरा अध्ययन किया था । ज्ञानप्राप्ति के लिए प्राकृत भाषा के अतिरिक्त संस्कृत भाषा का द्वार ठीक-ठीक खुलने से संस्कृत भाषा के वैदिक दर्शनसाहित्य और बौद्ध दर्शनसाहित्य को जानने का उन्हें अवसर मिला और उस अवसर का पूरा उपयोग करके उन्होने अपने ज्ञानभंडार को खूब समृद्ध किया ।
१. देखें – तत्त्वार्थभाष्य के हिन्दी अनुवाद की श्री नाथूरामजी प्रेभी की
प्रस्तावना ।
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