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यह भी विचारणीय है कि यशोभद्र एकमात्र अन्तिम सूत्र की वृत्ति क्यों नहीं लिख पाए, वह उनके शिष्य को क्यों लिखनी पड़ी ?
तुलना करने से ज्ञात होता है कि यशोभद्र और उनके शिष्य की भाष्यवृत्ति गन्धहस्ती की वृत्ति के आधार पर ही लिखी गई है।
हरिभद्र के षोडशक प्रकरण पर वृत्ति लिखनेवाले एक यशोभद्रसरि हो गए है, वे ही प्रस्तुत यशोभद्र हैं या अन्य, यह भी एक विचारणीय प्रश्न है।
(च) मलयगिरि मलयगिरि' की लिखी हई तत्त्वार्थभाष्य की व्याख्या उपलब्ध नहीं है । ये विक्रम की १२वी-१३वीं शताब्दी के विश्रुत श्वेताम्बर विद्वान् हैं। ये आचार्य हेमचन्द्र के समकालीन हैं और इनकी प्रसिद्धि सर्वश्रेष्ठ टीकाकार के रूप में है । इनकी बीसों महत्त्वपूर्ण कृतियां उपलब्ध हैं।
(छ) चिरंतनमुनि चिरंतनमुनि एक अज्ञातनामा श्वेताम्बर साधु थे । इन्होंने तत्त्वार्थ पर साधारण टिप्पण लिखा है । ये विक्रम की चौदहवीं शताब्दी के बाद किसी समय हुए हैं, क्योंकि इन्होंने अध्याय ५, सूत्र ३१ के टिप्पण में चौदहवीं शताब्दी के मल्लिषेण की 'स्याद्वादमंजरी' का उल्लेख किया है।
(ज) वाचक यशोविजय वाचक यशोविजय की लिखी तत्त्वार्थभाष्य की वत्ति का अपूर्ण प्रथम अध्याय ही मिलता है । ये श्वेताम्बर सम्प्रदाय में ही नहीं किन्तु सम्पूर्ण जैन समाज में सबसे अन्त में होनेवाले सर्वोत्तम प्रामाणिक विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनकी अनेक कृतियाँ उपलब्ध हैं। सतरहवींअठारहवीं शताब्दी तक होनेवाले न्यायशास्त्र के विकास को अपनाकर
१. मलयगिरि ने तत्त्वार्थटीका लिखी थी ऐसी मान्यता उनकी प्रज्ञापनावृत्ति मे उपलब्ध निम्न उल्लेख तथा ऐसे ही अन्य उल्लेखों पर से रूढ हुई है - "तच्चाप्राप्तकारित्वं तत्त्वार्थटीकादी सविस्तरेण प्रसाधितमिति ततोऽवधारणीयम् ।"-प्रज्ञापना, पद १५, पृ० २९८ ।
२. देखे----'धर्मसंग्रहणी' की प्रस्तावना, पृ० ३६ । ३. देखें-जैनतर्कभाषा, प्रस्तावना, सिंघी ग्रंथमाला।
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