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और उन्होंने नई संकलना भी की है, फिर भी मूल अंग त के भावों में कोई परिवर्तन या काट-छाँट नहीं की गई है। बारीकी से देखने तथा ऐतिहासिक कसौटी पर कसने पर सचेल दल की बात बहुत-कुछ सत्य ही जान पड़ती है, क्योकि सचेलत्व का समर्थन करते रहने पर भी इस दल ने अंगश्र त में से अचेलत्वसमर्थक, अचेलत्वप्रतिपादक किसी अंश को उड़ा नहीं दिया।' जैसे अचेल दल का कहना था कि मूल अंगश्र त लप्त हो गया वैसे ही सचेल दल का कहना था कि जिनकल्प अर्थात् पाणिपात्र या अचेलत्व का जिनसम्मत आचार भी काल-भेद के कारण लुप्त हो गया है। फिर भी हम देखते है कि सचेल दल के द्वारा संस्कृत, संगहीत और नव-संकलित श्र त में अचेलत्व के आधारभूत सब पाठ तथा तदनुकूल व्याख्याएँ विद्यमान हैं। सचेल दल द्वारा अवलम्बित अंगश्रुत के मल अंगश्र त से निकटतम होने का प्रमाण यह है कि वह उत्सर्गसामान्यभूमिकावाला है, जिसमें अचेल दल के सब अपवादों का या विशेष मार्गो का विधान पूर्णतया आज भी विद्यमान है, जब कि अचेल दल-सम्मत नग्नत्वाचारथ त औत्सर्गिक नहीं है, क्योकि वह मात्र अचेलत्व का ही विधान करता है। सचेल दल का श्र त अचेल तथा सचेल दोनों आचारों को मोक्ष का अंग मानता है, वास्तविक अचेल-आचार की प्रधानता भी स्वीकार करता है। उसका मतभेद उसकी सामयिकता मात्र में है, जब कि अचेल दल का श्र त सचेलत्व को मोक्ष का अंग ही नही मानता, उसे बाधक तक मानता है। ऐसी स्थिति में स्पष्ट है कि सचेल दल का श्र त अचेल दल के श्रु त की अपेक्षा उस मूल अंगशु त के अति निकट है।
मथुरा के बाद वलभी में पुनः श्रुत-संस्कार हुआ, जिसमें स्थविर या सचेल दल का रहा-सहा मतभेद भी समाप्त हो गया। पर साथ ही
१. देखे-प्रस्तुत प्रस्तावना, पृ० १९ की टिप्पणी ३ । २. गण-परमोहि-पुलाए आहारग-खवग-उवसमे कप्पे । संजम् ति:-केवलि-सिज्झणा य जम्बुम्मि वुच्छिण्णा ।।
-विशेषा० २५९३ । ३. सर्वार्थसिद्धि मे नग्नत्व को मोक्ष का मुख्य और अबाधित कारण माना गया है।
४. वी० नि० ८२७ और ८४० के बीच । देखें वीरनिर्वाणसंवत् और जैनकालगणना, पृ० ११० ।।
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