________________
- ३० -
कहीं तत्त्वार्थभाष्य, कही गन्धहस्तिभाष्य जैसे अलग-अलग अनेक उल्लेख दिगम्बर-साहित्य में बिखरे हुए मिलते हैं और कहीं स्वामी समन्तभद्र नाम का निर्देश तत्त्वार्थ-महाभाष्य के साथ भी है। यह सब देखकर बाद के अर्वाचीन लेखकों को यह भ्रान्तिमूलक विश्वास हुआ कि स्वामी समन्तभद्र ने उमास्वाति के तत्त्वार्थ पर गन्धहस्ती नामक महाभाष्य लिखा था । इसी विश्वास ने उन्हें ऐसा लिखने को प्रेरित किया। वस्तुत. उनके सामने न तो ऐसा कोई प्राचीन आधार था और न कोई ऐसी कृति थी जो तत्त्वार्थसूत्र पर गन्धहस्ती-भाष्य नामक व्याख्या को समन्तभद्रकर्तृक सिद्ध करते । भाष्य, महाभाष्य, गन्ध-हस्ती आदि बड़े-बड़े शब्द तो थे ही, अतएव यह विचार आना स्वाभाविक है कि समन्तभद्र जैसे महान् आचार्य के अतिरिक्त ऐसी कृति कौन रच सकता है ? विशेषकर इस स्थिति में कि जब अकलङ्क आदि बाद के आचार्यो के द्वारा रचित कोई कृति गन्धहस्ती-भाष्य नाम से निश्चित न की जा सकती हो । उमास्वाति के अतिप्रचलित तत्त्वार्थ पर स्वामी समन्तभद्र जैसे आचार्य की छोटी-मोटी कोई कृति हो तो उसके उल्लेख या किसी अवतरण का सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक आदि अति-शास्त्रीय टोकाओं में सर्वथा न पाया जाना कभी संभव नही। यह भी सम्भव नहीं है कि वैसी कोई कृति सर्वार्थसिद्धि आदि के समय तक लुप्त ही हो गई हो जब कि समन्तभद्र के अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ विद्यमान हैं। जो हो, मुझे अब कोई सन्देह नहीं है कि तत्त्वार्थ पर समन्तभद्र का गन्धहस्ती नामक कोई भाष्य नहीं था।
पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार ने अनेकान्त (वर्ष १, पृ० २१६) में लिखा है कि 'धवला' में गन्धहस्ती-भाष्य का उल्लेख आता है, पर हमें धवला की मूल प्रति को जाँच करनेवाले पं० हीरालालजी न्यायतीर्थ के द्वारा विश्वस्त रूप से ज्ञात हुआ है कि धवला में गन्धहस्ती-भाष्य शब्द का उल्लेख नही है।
वृद्धवादी के शिष्य सिद्धसेन दिवाकर के गन्धहस्ती होने की श्वेताम्बरमान्यता सत्रहवीं-अठारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध विद्वान् उपाध्याय यशोविजयजी के एक उल्लेख पर से चली है। उपाध्याय यशोविजयजी ने अपने 'महावीरस्तव' में गन्धहस्ती के कथन के रूप में सिद्धसेन दिवाकर
१. "अनेनैवाभिप्रायेणाह गन्धहस्ती सम्मतौ'- न्यायखण्डखाद्य, पृ० १६।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org