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- २८ - के रचना-स्थान के रूप में 'कुसुमपुर' का निर्देश है । यह कुसुमपुर हो इस समय बिहार का पटना है। प्रशस्ति में कहा गया है कि विहार करतेकरते पटना मे तत्त्वार्थ को रचना हुई। इस पर से नीचे की कल्पनाएँ स्फुरित होती हैं :
१. उमास्वाति के समय में और कुछ आगे-पीछे भी मगध में जैन भिक्षओं का खुब विहार होता रहा होगा और उस तरफ जैन संघ का बल तथा आकर्षण भी रहा होगा ।
२. विशिष्ट शास्त्र के लेखक जैन भिक्ष अपनी अनियत स्थानवास की परम्परा को बराबर कायम रख रहे थे और ऐसा करके उन्होंने अपने कुल को 'जंगम विद्यालय' बना लिया था।
३. विहार-स्थान पाटलिपुत्र (पटना) और मगधदेश से जन्म-स्थान न्यग्रोधिका सामान्य तौर पर बहुत दूर नहीं रहा होगा ।
२. तत्त्वार्थ के व्याख्याकार तत्त्वार्थ के व्याख्याकार श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में हए हैं, परन्तु इसमें अन्तर यह है कि श्वेताम्बर परम्परा में सभाष्य तत्त्वार्थ की व्याख्याओं की प्रधानता है और दिगम्बर परम्परा में मूल सूत्रों की ही व्याख्याएँ हुई है। दोनो सम्प्रदायों के इन व्याख्याकारों में कितने ही ऐसे विशिष्ट विद्वान् हैं जिनका स्थान भारतीय दार्शनिकों में भी आ सकता है। अतः यहाँ ऐसे कुछ विशिष्ट व्याख्याकारों का ही सक्षेप में परिचय दिया जा रहा है।
(क) उमास्वाति तत्त्वार्थसूत्र पर भाष्यरूप में व्याख्या लिखनेवाले स्वयं सूत्रकार उमास्वाति ही हैं। इनके विषय में पहले लिखा जा चुका है। अतः इनके विषय में यहाँ अलग से लिखना आवश्यक नहीं है। सिद्धसेनगणि' की भाँति आचार्य हरिभद्र भी भाष्यकार और सूत्रकार को एक ही समझते हैं, ऐसा उनकी भाष्य-टीका के अवलोकन से स्पष्ट ज्ञात होता है। हरिभद्र
१. देखे –प्रस्तुत प्रस्तावना, पृ० १३, टि० १ और पृ० १५-१६ ।
२. "एतन्निबन्धनत्वात् संसारस्येति स्वामियमभिधाय मतान्तरमुपन्य. सन्नाह-एके त्वित्यादिना"-पृ० १४१ ।
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