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प्रश्नों के उत्तर
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कर्ज़ के खड्डे को तथा मोज-शोक एवं ऐयाशी के राक्षसी पेट को भरने का प्रयत्न करते हैं। बाहर से संपन्न दीखते हैं, पर अन्दर अन्दर ही चिन्ता एवं दुःख का संवेदन करते हैं । श्रीर इस तरह सारा जीवन केवल क्षणिक ग्रामोद-प्रमोद के पीछे वर्वाद कर देते हैं। यह स्थिति एक-दो परिवार की नहीं अनेकों परिवार कर्ज के बोझ से कराह रहे हैं। तो मैं बता रहा था कि भौतिक उन्नति ही वास्तविक उन्नति नहीं है । श्राध्यात्मिक उन्नति के अभाव में केवल भौतिक उन्नति जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक है ।
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इससे यह स्पष्ट हो गया कि पाश्चात्य देशों का विकास विनाश एवं खतरे से युक्त है । वह स्वयं के तथा प्राणी जगत के लिए भयावह है । परन्तु भारतियों का विकास - जितना भी उन्होंने किया है, दुनिया के लिए उतना खतरनाक नहीं रहा है। यह कहना एवं समझना भारी भूल है कि भारतियों के पास वैज्ञानिक उन्नति करने का दिमाग़, सूझ-बूझ एवं तरीक़ा नहीं है विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय दिमाग़ पाश्चात्य देशों से पीछे नहीं हैं । यह बात अलग है कि प्राध्यात्मिक संस्कृति के संस्कारों के पले-पोसे होने के कारण विनाशक शस्त्राशस्त्र बनाने में उनका दिमाग़ गतिशील कम रहा । परन्तु वैज्ञानिक अन्वेषण में भारतीय भी सदा लगे रहे हैं। वनस्पति भी सजीव है, इसकी शोध करने वाले एवं वैज्ञानिक प्रयोगों के द्वारा उसमें सजीवता सिद्ध करने वाले जगदीश चन्द्र बोस भारतीय ही थे । उनसे पहले और उनके वाद भी अनेक विज्ञान वेत्ता हुए हैं। वर्तमान में भारतीय वैज्ञानिक डॉ. भाभा पाश्चात्य विज्ञान क्षेत्र में भी प्रसिद्ध हैं, " जो आजकल आणविक शक्ति का निर्माण एवं उसे शान्ति के कार्य में कैसे उपयोग किया जाए? इस खोज में संलग्न हैं और इस दिशा में