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प्रश्नों के उत्तर
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व्यक्ति हो विश्व को सही मार्ग बता सकता है, विश्व में शांति का प्रयास कर सकता है और इसके लिए साधना एवं तपस्या की आवश्यकता है ।
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आजकल श्राचार्य विनोभा भावे एवं सन्तं बाल जी राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को बिना संघर्ष एवं बिना युद्ध के समाप्त करने के लिए शान्ति सेना का प्रयोग कर रहे हैं। राष्ट्र में कई झगड़ों को निपटाने में शांति सेना कुछ हद तक सफल भी रही है। ये शांति सैनिक प्रेम-स्नेह से समस्यानों को सुलझाने का प्रयत्न करते हैं । इन्हें भी पहले शिक्षा दी जाती है। संघर्षो में भी शान्त रहने के लिए जीवन को मांजने की साधना करनी पड़ती है । तब उन्हें प्रपने काम में सफलता मिलती है । महात्मा गांधी को जोवन हमारे सामने है कि विना खून की वृन्द बहाए हिंसा की ताकत से आजादी पाने के लिए उन्हें कितनी साधना करनी पड़ी थी, अपने जीवन को कितना मांजना पड़ा था। हां तो मैं बता रहा था कि प्रांतरिक जीवन को बदलने के लिए, साधना को आवश्यकता है और अन्तर्जीवन को मांजे बिना सुख-शांति का प्राप्त होना दुर्लभ है | अतः साधु अपने अन्तर्जीवन को मांजने के लिए जो साधना करता है, वह भी श्रम है । वस्तुतः देखा जाए तो साधु का सारा जीवन ही श्रममय है । उसका एक क्षण भी व्यर्थ नहीं. जाता । अतः उसे निकम्मा या आलसी समझना साधना के मूल्य को नहीं पहचानना है ।
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इतनी लम्बी चर्चा के बाद हमने स्पष्टतः देख लिया कि भोख प्रोर भिक्षा एक नहीं, भिन्न-भिन्न हैं । भोख दोनता का प्रतीक है, श्रतः राष्ट्र के लिए कलंक रूप है । परन्तु भिक्षा साधना को, समता की, त्याग-तन की प्रतीक है, अतः वह राष्ट्र के लिए गौरव को चोज है । भोख से राष्ट्र पतन के गर्त में गिरता है, तो भिक्षा के कारण वह