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जैनधर्म और विश्वसमस्याएं
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सतरहवां अध्याय प्रश्न-जैनधर्म विश्व के निर्माण एवं कल्याण के लिए कैसे सहकारी बन सकता है ? विश्व की समस्याओं को समाहित करने में इस की क्या उपयोगिता है ? ...... .
उत्तर-जैनधर्म विश्वकल्याण का प्रतीक बन कर ही संसार के सन्मुख उपस्थित होता है, और विश्व की समस्याओं को समाहित करने में इस में अत्यन्त उपयोगिता तथा उपादेयता है। वह कैसे
है ? इसे समझने से पूर्व धर्म की उपयोगिता को समझ लीजिए। ....... " " धर्म की सृष्टि व्यक्ति के उत्थान और कल्याण के लिए ही की। ...गई है। इस का कारण स्पष्ट है कि व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र...
और विश्व से कोई अलग वस्तु नहीं है। व्यक्तियों का समूह परिवार है, परिवारों का समूह समाज है। समाजों का समूह राष्ट्र और राष्ट्रों का समूह ही विश्व के नाम से पुकारा जाता है। अत: आज
जिन्हें विश्व की समस्याएं कहा जाता है, वास्तव में उन्हें विश्व में - वसने वाले व्यक्तियों की ही समस्याएं समझना चाहिए । यह सत्य . - है कि व्यक्ति एक एकाई है, किन्तु अनेक एकाइयाँ मिलकर ही .. . दहाई, सैंकड़ा, हज़ार आदि संख्याएं बनती हैं। अतः व्यक्ति के
.. उत्थान के लिए जन्मा हुअा धर्म जव किसी खास व्यक्ति के अभ्युत्थान : ... . का कारण न बन कर व्यक्ति मात्र के अभ्युत्थान का कारण बनता - है, तव वह विश्व के भी उत्थान का कारण बन सकता है। इसके.... :: विपरीत जो धर्म व्यक्ति की समस्याओं को समाहित नहीं कर पाता -
. उस से विश्व की समस्याएं समाहित हो सकेंगी, ऐसा नहीं कहा जा